नई दिल्ली:  सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के पीछे कथित ‘बड़ी साजिश’ के मामले में स्टूडेंट एक्टिविस्ट गुलफिशा फातिमा (student activist Gulfisha Fatima) की जमानत याचिका पर सुनवाई करने से सोमवार को इनकार कर दिया है.  इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट से कहा कि वह उसकी याचिका पर 25 नवंबर को विचार करे. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता इस मामले में 4 साल और 7 महीने से हिरासत में है. बेंच ने कहा कि अगर कोई असाधारण परिस्थितियां न हों तो हाई कोर्ट में पेंडिंग उसकी जमानत याचिका पर 25 नवंबर को सुनवाई की जानी चाहिए.


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बेंच ने कहा कि फातिमा के केस में उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए, और वह फातिमा द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई याचिका पर खुद विचार नहीं कर सकती.


क्या कहते हैं आरोपी के वकील 
वहीँ प्रतिवादी फातिमा की जानिब से पेश वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस केस में हाई कोर्ट मामले की सुनवाई नहीं कर रहा है, और इसे किसी न किसी बहाने से रद्द किया जा रहा है. हाईकोर्ट अबतक इस मामले को 24 बार सिर्फ इसलिए रद्द कर दिया, क्योंकि बेंच के जज छुट्टी पर थे और 6 बार मामले को दीगर वजहों से मुलतवी किया गया. सिब्बल ने कहा, ‘‘यह किसी की आज़ादी का सवाल. उसके मामले को किसी न किसी बहाने से रद्द किया जा रहा है. वह 4 साल और 7 महीने से जेल में है, और उसका मामला दो साल से हाई कोर्ट में लंबित है.’’ 


गुलफिशा फातिमा पर क्या है इलज़ाम ? 
गौरतलब है कि फातिमा (Gulfisha Fatima) सहित कई दीगर लोगों पर आतंकवाद रोधी कानून- गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिन पर दंगों के ‘मुख्य षड्यंत्रकारी’ होने का इलज़ाम है.  फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए इन दंगों में कम से कम 53 लोग मारे गए थे, और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए), 2019 और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी थी. इसी मामले के JNU के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद सहित कई दूसरे छात्र नेता में जेल में बंद हैं.