हिंदू-मुस्लिम की सबसे बड़ी जमातों ने सेम सेक्स मैरिज पर दिया रिएक्शन, जानें दोनों ने क्या कहा?
Hindu-Muslim Organizations on Same Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने से इंकार कर दिया है. इस फैसले का हिंदू तंजीम RSS और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस्तेकबाल किया है.
Hindu-Muslim Organizations on Same Sex Marriage: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने मंगलवार को सेम सेक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और कहा कि संसद इसके अनेक पहलुओं पर चर्चा कर सकती है और सही फैसला ले सकती है. सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मंगलवार को सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया. सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता दिए जाने की गुजारिश करने वाली 21 अर्जियों पर चीफ जसटिस डी वाई चंद्रचूड़ की कयादत वाली पीठ ने सुनवाई की.
RSS ने किया फैसले का स्वागत
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालत कानून नहीं बना सकता, केवल उनकी व्याख्या कर सकता है और विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करना संसद का काम है. RSS के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘सेम सेक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस्तेकबाल के लायक है. हमारी लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली इससे जुड़े सभी मुद्दों पर सोच सकती है और सही फैसला ले सकती है.’’ इस पर भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा मेंबर और सीनियर वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला न्यायिक समीक्षा की सीमा को रेखांकित करता है और इसमें इस बात को माना गया है कि यह मुद्दा संसद के अधिकार क्षेत्र में है.
मुस्लिम संगठन ने किया इस्तेकबाल
इसी कड़ी में मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने समलैंगिक विवाहों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा कि इस फैसले से शादी के पाक बंदोबस्त की रक्षा हुई है. जमीयत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी ने एक बयान में कहा, ‘‘भारत एक पुरानी तहजीब और शकाफत वाला देश है, जो दीगर मजहबों और विचारधाराओं की नुमाइंदगी करता है. इसे पश्चिमी दुनिया के स्वतंत्र विचारों वाले अभिजात्य वर्ग की मनमानी से कुचला नहीं जा सकता.’’
उनका कहना है, ‘‘अदालत ने इस फैसले से शादी की पाक और निजाम की रक्षा की है जैसा कि हमारे देश में सदियों से समझा और उसे आत्मसात किया जा रहा है. हम निजी हक के तहफुज और अपने शकाफती मूल्यों के तहफुज के बीच संतुलन बनाने में अदालत के फैसले की तारीफ करते हैं.’’