जालना: मस्जिदों और मंदिरों पर लगने वाले लाउडस्पीकर और उससे पैदा होने वाले प्रदूषण के बहस के बीच एक इस्लामिक विद्वान ने मुस्लिम समुदाय के सदस्यों और उसके मौलवियों से यह आग्रह किया है कि अज़ान या प्रार्थना के दौरान लाउडस्पीकर का इस्तेमाल तयशुदा मानकों के अन्दर रखा जाए.


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मुंबई के इस्लामिक विद्वान और ऑल इंडिया सुन्नी जमीयतुल उलमा (एआईएसजेयू) के सदर सैयद मोइनुद्दीन अशरफी ने कहा है कि मौलवियों को लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के संबंध में बॉम्बे हाईकोर्ट के हालिया फैसले का पालन करना चाहिए. उन्होंने कहा, "इस्लाम दूसरों को नुकसान नहीं पहुंचाता है. यह हमें दूसरों को नुकसान से बचाने के लिए उनके रास्ते से कांटे या पत्थर हटाने की सीख देता है." 


इसलिए हमें किसी को परेशान करने वाला काम या ऐसा काम जिससे किसी इंसान को परेशानी हो, हमें नहीं करना चाहिए. अज़ान की आवाज़ इतनी रखें जितनी कि नमाजियों तक आसानी से पहुँच जाए..इससे किसी दूसरे आदमी को जो नमाज़ नहीं पढता है, या मुस्लिम समाज का हिस्सा नहीं है, उनतक लाउडस्पीकर की आवाज़ न पहुँचने दें. 


हाईकोर्ट ने कहा लाउडस्पीकर से अज़ान धर्म का हिस्सा नहीं  
गौरतलब है कि  हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किसी भी धर्म का ज़रूरी हिस्सा नहीं है, कोर्ट ने राज्य को निर्देश दिया कि वह धर्म के बावजूद पूजा स्थलों से ध्वनि प्रदूषण को रोकने की दिशा में काम करे. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि वह धार्मिक संस्थाओं को ध्वनि स्तर को काबू करने के लिए तंत्र अपनाने का निर्देश दे, जिसमें ऑटो-डेसिबल सीमा वाले कैलिब्रेटेड साउंड सिस्टम शामिल हैं.



अज़ान, नात और आरती जब बन जाए किसी की परेशानी की वजह 
गौरतलब है कि देशभर में खासकर भाजपा शासित राज्यों में मस्जिद और मंदिरों से लाउडस्पीकर हटाने की कारवाई की गयी है. मंदिरों में जहाँ सुबह- सुबह आरती और घंटे की आवाज़ से लोगों को परेशानी होती है. आरती अक्सर संगीत के साथ गाई जाती है, जिससे मंदिरों के आसपास रहने वाले, बीमार लोगों, बुजुर्गों और स्टूडेंट्स को समस्याएं होती है. वहीँ, मस्जिदों के अज़ान से भी लोग परेशानी होने की शिकायत करते हैं. अज़ान दिन में पांच बार 2- 2  मिनट के लिए दी जाती है. लेकिन कुछ मस्जिदों में सुबह में फज्र की नामज़ के लिए होने वाली अज़ान के बाद रिकार्डेड नात ( पैगम्बर मुहम्मद (स.) की तारीफ में गाये जाने वाले गीत ) बजाये जाने की वजह से काफी लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. कोर्ट के आदेश के बाद अब मस्जिद और मंदिर कमिटी के लोग भी अपनी मर्ज़ी से तेज आवाज़ से परहेज कर रहे हैं. 


इस बीच, सैयद मोइनुद्दीन अशरफी ने वक्फ (संशोधन) बिल, 2024 में कबूल किए गए संशोधनों पर कड़ा ऐतराज़ जताया है. विधेयक की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने विपक्षी सांसदों द्वारा प्रस्तावित 44 संशोधनों को खारिज कर दिया, लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के 14 संशोधनों को स्वीकार कर लिया है. अशरफी ने इस फैसले की मज़म्मत करते हुए कहा, "वक्फ एक धार्मिक संस्था है, और इसमें कोई भी दखलअनदाज़ी मजहबी आज़ादी का उल्लंघन है." उन्होंने कहा कि एआईएसजेयू इन संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा.



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