अजमेर में सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में  नजराने के तौर पर चढ़ाए गए अनाज से अजमेर की दरगाह में ज़ायरीन के लिए लंगर बनाए जाते हैं. इस लंगर को खाने के लिए सभी धर्मों के लोग मौंजूद रहते हैं और बड़ी तादाद में लोग लंगर खाने के लिए आते हैं. ये लंगर हर रोज बनाया जाता है, ख्वाजा गरीब नवाज से मन्नत पूरी होने पर जायरीन अपनी आस्था और क्षमता के मुताबिक देग में भोजन पकवाते हैं और लंगर तकसीम करते है. 


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बादशाह अकबर ने की थी भेट
जायरीन देगों में हीरे जेवरात, रुपया, पैसा, जेवर, शक्कर, चावल, मेवे अपनी श्रद्धा के मुताबिक डालते हैं, ताकि लंगर में उनका भी सहयोग हो सके. ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में दुनिया के सबसे बड़े बर्तनो में से एक देग मौजूद है. दरग़ाह के गद्दीनशीन सैय्यद फखर काज़मी के मुताबिक अजमेर दरगाह में बड़ी देग मुगल बादशाह अकबर ने मन्नत पूरी होने पर दरगाह में भेट की थी. जिसमें मीठा लंगर पकाया जाता है. 


क्यों है यह देग खास?
दरग़ाह के गद्दीनशीन सैय्यद फखर काज़मी के मुताबिक छोटी और बड़ी देग में मन्नतॉ पूरी होने पर मीठे चावल पकाए जाते हैं. उन्होने बताया सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह  पर  सभी धर्म और जाति के लोग आते हैं, और यही वजह है कि छोटी और बड़ी देग में कभी भी मांसाहारी भोजन नही पाकाया जाता हैं और न ही लहसुन प्याज का कभी इसमें इस्तेमाल में लाया जाता है. उन्होने बताया कि कमेटी देग की देख रेख और ठेके का काम करती है और उर्स पर छोटी देग  में तबर्रुक  पकाया जाता है.


देगों मे पकने वाला मीठा चावल रोज जायरीन को दिया जाता है. रात में छोटी देग में खाना बनता है. अगले दिन सुबह लोगों को देग में पक्का तबर्रुक दिया जाता है. इसके अलावा दरगाह  के लंगर खाने में दो कड़ाव और भी हैं. जहां जौ का दलिया ही पकाया जाता हैं. बताया जाता हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज अपने जीवन काल में दलिया ही खाया करते थे.  


गौरतलब है कि अजमेर दरगाह में सभी धर्मों के श्रद्धालुओं को ध्यान में रखते हुए केवल शाकाहारी लंगर बनाया जाता है. लंगर के विशेष गुणों की बात करें तो अकीदतमंदों का मानना है कि लंगर के रोजाना सेवन से बीमारियां दूर होती हैं और दुआएं कबूल होती हैं. जायरीन इस लंगर को लेने के लिए लाइन में लगते हैं और इसे साफ-सुथरी तरीके से बनाया जाता है.