Hijab Controversy: कर्नाटक से शुरू हुआ बुर्का और हिजाब विवाद आज पूरे देश के लिए अहम मुद्दा बन चुका है. बुर्का और हिजाब को लेकर आए दिन राजनीतिक बयानबाजी जारी है. हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में हिजाब और बुर्का अहम मुद्दा बना था. इस पर देशभर में राजनीतिक बवाल मचा हुआ है. इस बीच, कुछ महिलाओं ने माथे पर माशाअल्लाह लिखा हुआ हिजाब पहना, जिसके बाद आलोचना और बचाव का दौर जारी हो गया.


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एक तरफ ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने मुस्लिम महिलाओं को माथे पर अल्लाह और माशाअल्लाह लिखे हिजाब न पहनने की वकालत की है. वहीं दूसरी तरफ सूफी फाउंडेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष कशिश वारसी ने मौलाना शहाबुद्दीन बरेलवी के घूंघट और हिजाब वाले बयान पर भड़कते हुए निशाना साधा है.  ऐसे आइए जानते हैं पूरा मामला क्या है.


बदलते दौर में बदल रहा है लोगों का ट्रेंड
दरअसल, इस बदलते दौर में एक नया चलन चल पड़ा है. लोग अपने वाहनों और कपड़ों पर अपनी जाति और धर्म से जुड़े शब्द लिखवा रहे हैं.पहले लोग अपनी कपड़ों पर कॉलेज के नाम लिखवाते थे. अब जैसे-जैसे समय बदल रहा है, लोगों के स्टाइल भी बदल रहे हैं. अब लोग अपनी मर्जी के हिसाब से अपने कपड़ों पर नाम और धार्मिक शब्द लिखवा रहे हैं. 


माथे पर अल्लाह और माशाअल्लाह लिखे हुए हिजाब का चलन
हाल ही में मुस्लिम महिलाओं में भी ऐसा ही चलन देखने को मिला है. अब माथे पर अल्लाह और माशाअल्लाह लिखे हिजाब बाजार में उपलब्ध हैं और ये महिलाओं को काफी आकर्षित कर रहे हैं. महिलाएं खूब खरीदारी कर रही हैं. अब इस मुद्दे पर मौलानाओं में मतभेद हैं. कई मौलाना इसके पक्ष में हैं तो कई इसके खिलाफ हैं. इसी कड़ी में मौलाना शहाबुद्दीन बरेलवी ने महिलाओं को सलाह देते हुए कहा कि इस तरह का हिजाब पहनने से कट्टरता बढ़ती है. अब इस बयान पर कई इस्लामिक स्कॉलर ने पलटवार किया है.


मौलाना के बयान पर पलटवार
मौलाना शहाबुद्दीन बरेलवी के बयान पर पलटवार करते हुए सूफी इस्लामिक बोर्ड के राष्ट्रीय सचिव कशिश वारसी ने महिलाओं से माथे पर अल्लाह लिखने और हिजाब पहनने की बड़ी अपील की है. उन्होंने कहा कि मौलाना का यह बयान यह दुखद और आश्चर्यजनक है कि मुल्ला जी का काम सिर्फ महिलाओं को देखना है. पहले धर्मगुरुओं का काम अलग था लेकिन अब उनका काम महिलाओं पर नज़र रखना हो गया है.


महिलाओं के बुर्के से मौलानाओं को है परेशानी
उन्होंने आगे कहा कि कुछ सियासी लोग और धार्मिक कट्टरपंथी सिर्फ महिलाओं पर ध्यान देते हैं और उन्हें अपमानित और बदनाम करते हैं. अगर वे बुर्का पहनती हैं तो दिक्कत है, अगर वे नहीं पहनती हैं तो दिक्कत है. अगर महिलाएं बुर्का पहनकर बाहर निकल रही हैं तो भी उन्हें दिक्कत है. उन्हें अल्लाह के नाम से भी दिक्कत है. अगर माशा अल्लाह लिखा है तो उन्हें आपत्ति है. अगर वे बुर्का पहने हैं तो उन्हें आपत्ति है. वे चाहते हैं कि बुर्का बिल्कुल न पहना जाए.