Maulana Abul Kalam Azad Birthday: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर, 1888 को मक्का में हुआ था. उनके पिता मौलाना खैरुद्दीन और मां आलिया थीं. आजाद का असली नाम अबुल कलाम मोहिद्दीन खैरुद्दीन था.  वह अरबी, फ़ारसी, तुर्की और उर्दू जबान के जानकार थे. उन्होंने 12 साल की कम उम्र में 'नैरंग-ए-आलम' पत्रिका शुरू की. तेरह साल की उम्र में उन्होंने साहित्यिक आलोचना पर लेख लिखे, जिसके लिए उन्हें एक जानकार, शायर और बुद्धिजीवी के तौर पर तारीफ मिली.


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क्रांतिकारी रास्ता छोड़ा


उन्होंने 1904 में अखिल भारतीय मुस्लिम शैक्षिक सम्मेलन और अखिल भारतीय मुस्लिम संपादक सम्मेलन में हिस्सा लिया. अपने शुरुआती दिनों में उन्हें मुस्लिम लीग की विचारधारा पसंद थी. उनका मानना था कि विदेशी शासकों को हराने के लिए सशस्त्र संघर्ष ही एकमात्र समाधान है. अपने दौर में उन्होंने कई क्रांतिकारी संगठन शुरू किए. लेकिन, जनवरी 1920 में जब उनकी पहली मुलाकात महात्मा गांधी से हुई, तो उन्होंने अपना क्रांतिकारी रास्ता छोड़ दिया. इसके बाद से उन्होंने उन्होंने अहिंसा आंदोलन का सपोर्ट किया.


अंग्रेजों ने किया बैन


उन्होंने खिलाफत और असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया और राष्ट्रीय आंदोलन में प्रवेश किया. उन्होंने कई रिसर्च वाली किताबें लिखीं. उन्होंने जो किताबें लिखीं उसमें 'अल हिलाल', 'अल बलाग' शामिल हैं. उन्होंन कई उर्दू पत्रिकाएँ और पेपर भी निकाले. इन सबका मकसद विदेशी शासन के खिलाफ लोगों में बेदारी लाना था. उनकी चाहत थी कि वह भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को सूचित करें और लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करें. उनकी मग्जीन को कई बार अंग्रेजों की तरफ से बैन किया गया.


कई साल जेल में बिताए


भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान, मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी जिंदगी के 10 साल और सात महीने देश की अलग-अलग जेलों में गुजारी. जब वह 25 साल के थे तो उन्होंने 1923 में दिल्ली में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सत्र की सदारत की. उन्होंने 1927 में मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच समझौते में भी अहम किरदार अदा किया. वह साल 1939 में एक बार फिर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 1948 तक इस पद पर बने रहे.


हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए किया काम


मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अलगाववादी विचारधारा का कड़ा विरोध किया और ऐलान किया कि राष्ट्र के लिए आजादी से ज्यादा जरूरी है हिदुओं और मुसलमानों के बीच सद्भाव. आज़ादी के बाद मौलाना अबुल कलाम आजाद पहले शिक्षा मंत्री बने. उन्होंने अपने दौर में शैक्षिक क्षेत्र में सृजनात्मक और रचनात्मक प्रोग्राम एवं योजनाएँ लागू कीं. मौलाना अबुल कलाम आजाद ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और इसके बाद भी हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सद्भाव की कोशिश की. मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने 22 फरवरी, 1958 को अपनी आखिरी सांस ली.


लेखक- सैयद नसीर अहमद
ये लेखक के अपने विचार हैं.