Muslim Freedom Fighters on Independence Day 2024: भारत की आज़ादी में हज़ारो मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों ने कुर्बानियां दी. कुछ को याद रखा गया और कई को भुला दिया गया. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम आपके लिए उन लीडर्स के नाम लेकर आए हैं, जिन्होंने इस वतन के लिए खुद को फना कर दिया. तो आइये जानते हैं


आबिद हसन सफरानी


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हैदराबाद के एक भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) के सिपाही आबिद हसन सफ़रानी हैदराबाद के गुमनाम नायकों में से एक हैं. उन्होंने न केवल भारत की आज़ादी में भूमिका निभाई बल्कि ‘जय हिंद’ का नारा भी गढ़ा जिसे बाद में भारतीय सेना और सरकारी कर्मचारियों का अभिवादन घोषित कर दिया गया. सफ़रानी लगातार बर्मा से लेकर भारत के इम्फाल तक INA के साथ लड़ते रहे. भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) में शामिल किया गया.


मौलाना अबुल कलाम  आज़ाद


मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, एक फेमस इस्लामी स्कॉलर, लेखक, एकेडमीशियन और एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे. वह 35 साल की उम्र में इंडियन नेशनल कांग्रेस, के सबसे युवा अध्यक्ष चुने गए और बाद में उन्होंने ऐतिहासिक खिलाफत मूवमेंट को लीड किया. आज़ादी के बाद वह पहले एजुकेशन मिनिस्टर बने, और 10 साल तक रहे. 11 नवंबर को उनके जन्मदिन पर वर्ल्ड एजुकेशन डे मनाया जाता है.


सिराज-उद-दौला


बंगाल के नवाब सिराज-उद-दौला पहले भारतीय राजा थे जिन्होंने देश के भविष्य के लिए अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के जरिए भारत को होने वाले नुकसान को भांप लिया था. उन्होंने अंदेशा हो गया था कि ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार के नाम पर भारत में घुसना चाहती है. उन्होंने कंपनी के नापाक इरादों को विफल करने के लिए कई साहसिक कदम उठाए थे, लेकिन अपनों की गद्दारी की वजह से अंग्रेजों से हार गए.  


मीर कासिम अली खान


मीर कासिम अली खान एक योद्धा नवाब थे, जिन्होंने आखिरी वक्त तक ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ाई लड़ी. उनका मानना है कि वे अपने लोगों की आजादी और समृद्धि केवल तभी सुनिश्चित कर सकते हैं, जब अंग्रेजों को भारत से बाहर निकाल दिया जाए.


हैदर अली


हैदर अली को 'दक्षिण भारत के नेपोलियन' के तौर पर भी जाना जाता है. उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी और उसके गुर्गों की साजिशों के खिलाफ जबरदस्त लड़ाई लड़ी थी और ब्रिटिशर्स की महत्वकांशाओं पर अंकुश लगा दिया था. हैदर अली के बाद उनके बेटे टीपू सुलतान ने अंग्रेजों से जंग की. 


टीपू सुल्तान


'मैसूर के शेर' टीपू सुल्तान एक महान दूरदर्शी शासक थे, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवादी ताकतों के विस्तारवादी मंसूबों को उजागर किया और अपने साथी देशवासियों और देशी शासकों को एकजुट होकर ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जंग लड़ने का आह्वान किया था.


मौलाना पीर अली खान


मौलाना पीर अली खान ने ब्रिटिश सैन्य बल के खिलाफ लड़ाई लड़ी और कहा कि अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए खुद को बलिदान करना अपने देश के प्रति प्रेम का सबूत है.


मौलवी अब्दुल्लाह शाह फैज़ाबादी


मौलवी अहमदुल्ला शाह फैजाबादी ने ब्रिटिश खेमे में दहशत पैदा कर दी थी. 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन पर कई जीत दर्ज कीं.


अज़ीम उल्लाह खान
अजीम उल्लाह खान 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में एक रणनीतिकार के रूप में प्रसिद्ध थे. जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हार के हालात पैदा हो गए थे, तब वे नाना साहब, हज़रत महल और दूसरे लोगों के साथ नेपाल के जंगलों में चले गए. अजीमुल्लाह खान की मौत अक्टूबर 1859 में हुई, जब वे अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए वित्तीय और सैन्य सहायता लेने की कोशिश कर रहे थे.


मोहम्मद बख्त खान


मोहम्मद बख्त खान ने कमांडर-इन-चीफ का दायित्व संभालकर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं के खिलाफ 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों और नायिकाओं को नेतृत्व प्रदान किया. मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर के जरिए कमांडर-इन-चीफ के तौर में उनकी नियुक्ति के बाद उन्होंने सैनिकों को सुव्यवस्थित किया.


खान बहादुर खान


रोहिलखंड के शासक खान बहादुर खान ने मातृभूमि को आज़ाद कराने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी. ईस्ट इंडिया कंपनी के जरिए दिए गए एक बहुत ही हाई लेवल की पोस्ट को ठुकराते हुए खान बहादुर खान ने 70 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया. उन्होंने 31 मई, 1857 को रोहिलखंड की राजधानी बरेली में आज़ादी का ऐलान किया.


बहादुर शाह ज़फर


आखिरी मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया, जिसे इतिहास में अंग्रेजों के खिलाफ भारत के लोगों के गुस्से के प्रतीक के रूप में जाना जाता है. उन्होंने अपनी आखिरी सांस  7 नवंबर 1862 में जेल में ली.


बेगम हज़रत महल


बेगम हज़रत महल 1857 के विद्रोह की एक अहम महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं. कंपनी की सेना और बेगम की सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ था. जब हार अपरिहार्य हो गई, तो बेगम हज़रत महल नाना साहिब पेशवा और अन्य जैसे सह-क्रांतिकारी नेताओं के साथ नेपाल के जंगलों में चली गई थीं. बेगम हज़रत महल ने अपनी आखिरी सांस तक अपने राज्य की आजादी के लिए संघर्ष किया. 7 अप्रैल 1879 को नेपाल के काठमांडू में उनका निधन हो गया.


मौलाना हसरत मोहानी


हसरत मोहानी एक तखल्लुस था. उनका असली नाम सैयद फज़्ल-उल-हसन था. जिनका जन्म 1 जनवरी 1857 उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था. मोहानी एक फ्रीडम फाइटर, पोएट और उर्दू ज़ुबान के जानकार थे. स्वामी कुमारानंद के साथ मिलकर उन्हें 1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में माना जाता है. उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया था, जिसने आज़ादी की जंग में अहम रोल निभाया.


खान अब्दुल गफ्फार


खान अब्दुल गफ्फार को फ्रंटियर गांधी के तौर पर भी जाना जाता है. वह बलूचिस्तान के एक महान राजनेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और अपने काम और निष्ठा की वजह से फ्रंटियर गांधी, "बच्चा खां" और "बादशाह खान" के नाम से पुकारे जाने लगे. एक ज़माने में उनका मकसद संयुक्त, स्वतन्त्र और धर्मनिरपेक्ष भारत था. इसके लिए उन्होने 1930 में खुदाई खिदमतगार नाम के संग्ठन की स्थापना की. यह संगठन "सुर्ख पोश"(या लाल कुर्ती दल ) के नाम से भी जाना जाता है. 


अशफ़ाक़ उल्लाह खां


अशफाक उल्लाह खान ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में स्वतंत्रता सेनानी और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सह-संस्थापक थे. जो बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन बन गया. अशफाकुल्लाह खान को भगत सिंह के साथियों में गिना जाता है.