Independence Day 2024: हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था. भारत को आजादी दिलाने के लिए कई लोगों ने जद्दोंजहद की. देश को आजाद कराने के लिए कई लोगों ने अपनी जान की कुर्बानी दी. भारत को आजादी दिलाने में कुछ लोगों ने कुर्बानियां दीं तो कुछ लोगों ने कलम के लिए अपनी आवाज उठाई. भारत को आजादी दिलाने में मुस्लिम शायरों ने भी अहम रोल अदा किया. उनके शेरों और नारों ने लोगों के दिलों में जज्बा भर दिया.


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'इंकलाब जिंदाबाद'
भारत की आजादी में इस नारे ने कमाल कर दिया था. इस नारे का मकसद लोगों के दिलों हिम्मत पैदा करना था. इसे उर्दू के शायर 'मौलाना हसरत मोहानी' लिखा था. इस नारे को शहीद भगतसिंह और उनके साथियों ने असेंबली में बम फोड़ते हुए गाया था.


'सरफरोशी की तमन्ना'
'सरफरोशी की तमन्ना आब हमारे दिल में हैं, देख ना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है.' इस नज्म को शायर 'बिस्मिल अज़ीमाबादी' ने लिखा. इस नज्म को राम प्रसाद बिसमिल ने अपने साथियों के साथ अदालत में गाया था.


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'सारे जहां से अच्छा'
'सारे जहां से अच्छा' उर्दू के मशहूर शायर अल्लमा इक़बाल ने ये नज्म लिखी थी. इस नज्म ने भी आजादी में अहम रोल अदा किया था. उस वक्त इसे कई सरकारी कॉलेजों में पढ़ा जाता था. आज भी खास मौको पर कई स्कूलों में इसे पढ़ा जाता है.


'अंग्रेजों भारत छोड़ो'
इस नारे ने आजादी में अहम रोल अदा किया था. यह नारा 'यूसुफ मेहर अली' ने दिया था. महात्मा गांधी के सामने इस नारे के इस्तेमाल के लिए पेश किया गया था.


साइमन कमीशन वापस (Simon Go Back)
इस नारे को यूसुफ मेहर अली ने साइमन कमीशन को वापस लेने के लिए दिया था.  भारत में 3 फरवरी 1928 की रात जिस वक्त बंदरगाह पर साइमन कमीशन के सदस्य उतरे थे उस वक्त यूसुफ मेहर अली ने साइमन हगो बैक के नारे लगाए थे.