Gyanvapi Case: वाराणसी में मौजूद ज्ञानवीपी मस्जिद पर विवाद जारी है. राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सतेंद्र दास ने ज्ञानवापी मामले में कहा कि "अयोध्या विवाद के दौरान एएसआई सर्वे रिपोर्ट ने अहम किरदार अदा किया था, उसी तरह ज्ञानवापी के मामले में भी होना चाहिए." उन्होंने आगे कहा कि "अदालत के साक्ष्यों को सार्वजनिक करने का आदेश दे चुका है. इससे यह साबित होता है कि वहां पर पहले मंदिर था. ऐसे में कोर्ट को यह चाहिए कि सबूतों को देखते हुए ज्ञानवापी में मंदिर का निर्माण कराया जाए."


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इससे पहले भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने शुक्रवार को कहा कि मुसलमानों को ज्ञानवापी मस्जिद स्थल हिंदुओं को सौंप देना चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई बयान नहीं दिया जाना चाहिए जो सांप्रदायिक सद्भाव को बाधित कर सके.


मंदिर के सबुत मिलने का दावा
गिरिराज सिंह का यह बयान ज्ञानवापी मस्जिद परिसर पर ASI सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक होने के एक दिन बाद आया है, जिसमें हिंदू वादियों की नुमाइंदगी करने वाले वकील ने दावा किया था कि मस्जिद की तामीर पहले से मौजूद मंदिर को ध्वस्त करने के बाद की गई थी.


हिंदुओं को सौंप दें मस्जिद
सिंह ने कहा, "(अयोध्या में) राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है और सनातनियों ने इसका स्वागत किया है... लेकिन हमारी मांग हमेशा से अयोध्या, काशी और मथुरा रही है." उन्होंने आगे कहा कि "मैं अपने मुस्लिम भाइयों से अपील करूंगा कि जब सारे सबूत सामने आ जाएं तो काशी को हिंदुओं को सौंप दें, ताकि सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे. हमने आजादी के बाद कोई मस्जिद नहीं तोड़ी है, लेकिन पाकिस्तान में कोई मंदिर नहीं बचा है."


युवा जाग गया है
मंत्री ने कहा "मैं यह सद्भाव के लिए कह रहा हूं, उत्तेजक बयान न दें. यह बदला हुआ भारत है, सनातनी युवा जाग गया है. अगर कोई बाबर या औरंगजेब बनने की कोशिश करता है, तो युवाओं को महाराणा प्रताप बनना होगा. आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शांति बनी रहे, गेंद आपके पाले में है. 


मंदिर पर मस्जिद होने का दावा
ख्याल रहे कि काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर पर ASI सर्वे रिपोर्ट हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों को दी गई. हिंदू पक्ष ने दावा किया कि रिपोर्ट के मुताबिक परिसर में मंदिर के साक्ष्य मिले हैं. हिंदू पक्ष का दावा है कि रिपोर्ट यह साफ बताती है कि मस्जिद, जो काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में है, 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल के दौरान ध्वस्त होने के बाद मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी.