Muharram 2023: अब सड़कों पर नहीं किसी जरूरतमंद की रगों में बहेगा मुसलमानों का खून !
Blood Donation on Muharram 2023: मुहर्रम के मौके पर उलेमा मुस्लिम नौजवानों से खंजर मारकर अपना खून बहाने के बजाए किसी जरूरतमंद इंसान को रक्तदान करने की अपील कर रहे हैं, जिसपर मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने अमल करना भी शुरू कर दिया है.
नई दिल्लीः मुहर्रम की दसवीं तारीख को दुनियाभर के मुसलमान अपने-अपने तरीके से मनाते हैं. कुछ लोग इस दिन यौमे आशूरा का रोजा रखते हैं. कुछ दान करते हैं और भूखों को खाना खिलाते हैं. शिया मुस्लिम इस दिन इन सब के अलावा मातम मनाकर अपने गम का इजहार करते हैं. कुछ लोग इस मातम में अपने जिस्म को खंजर मार-मार कर जख्मी कर लेते हैं. ऐसा करने में उनके जिस्म से खून की धारें फूट पड़ती है. वह जहां मातम मनाते हैं, वहां की सड़कें खून से लाल हो जाती है. इस तरह हजारों यूनिट खून जो किसी की जान बचाने के काम आ सकता है, वह सड़कों पर यूं ही बहकर बर्बाद हो जाता है.
अब इस परंपरा को बदलने के लिए कुछ युवा आगे आ रहे हैं. इस साल देशभर के अलग-अलग हिस्सों में मुस्लिम नौजवानों और उलेमा ने मुहर्रम के दिन रक्तदान करने की लोगों से अपील की है. पिछले कई दिनों से लोग ऐसा कर भी रहे हैं. देशभर से ऐसी खबरें आ रही है, जहां मुस्लिम समाज के युवा किसी अस्पताल या ब्लड बैंक में जाकर अपना रक्तदान कर रहे हैं.
शुक्रवार को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, नई दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, हैदराबाद और कश्मीर में अलग-अलग जगहों पर हजारों मुस्लिम नौजवानों ने हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करते हुए उन्हें खिराज-ए-अकीदत पेश कर रक्तदान किया. इस तरह सिर्फ दो दिन में देशभर में हजारों यूनिट रक्त ब्लड बैंक और अस्पतालों में जमा हो गए.
उलेमा कर रहे हैं अपील
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में मुस्लिम नौजवानों से रक्तदान करने की अपील करने वाले शहर की जामा मस्जिद के इमाम मुफ्ती जुनैद उल कादरी कहते हैं, "इमाम हुसैन और उनके साथियों ने अपनी शहादत दुनिया में इंसानियत, सत्य और न्याय को जिंदा रखने के लिए दी थी. इसलिए उनकी याद में रक्तदान करने से बेहतर कोई और श्रद्धांजलि क्या होगी. हम इससे किसी जरूरतमंद इंसान की जान बचा सकते हैं."
इससे सच्ची श्रद्धांजलि और क्या हो सकती है?
इस मौके पर कश्मीर की स्वास्थ्य सहायक निदेशक डॉ. यास्मीन ने कहा कि देश और दुनिया में हर साल लाखों मरीजों की मौत सिर्फ इसलिए हो जाती है, क्योंकि उन्हें वक्त पर उनके ग्रुप का खून नहीं मिल पाता है. मुस्लिम नौजवानों का ये अमल देश में हजारों लोगों की जान बचाने के काम आ सकता है. इमाम हुसैन के लिए इससे सच्ची श्रद्धांजलि और क्या हो सकती है?
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