UNO: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मंगलवार को नफरती भाषणों का मुकाबला करने के लिए और सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान द्वारा लाए गए एक प्रस्ताव को अपना लिया है. 


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इस प्रस्ताव में वैश्विक समुदाय से नफरत भरे भाषण के सभी रूपों और आयामों का मुकाबला करने का आग्रह किया गया है. इसे न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में सर्वसम्मति से अपनाया गया है. जिसमें 44 देश पक्ष में, 62 देश विपक्ष में और 24 देश मतदान के दौरान अनुपस्थित रहे.


संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान मिशन के स्थायी मिशन के एक बयान में कहा गया है, "यह गहरी चिंता के साथ भेदभाव, असहिष्णुता और हिंसा की घटनाओं में वृद्धि को भी स्वीकार करता है. चाहे अभिनेता हो या कोई और हो. इस्लामोफोबिया से प्रेरित मामले भी शामिल हैं. जो पाकिस्तान द्वारा रखा गया एक प्रस्ताव था. जिसमें बाद में मिस्र, जॉर्डन और सऊदी अरब भी शामिल हो गए."


आपको बता दें कि इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान ने पढ़ाई में भाषा को शामिल करने के लिए इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) देशों की ओर से मलेशिया और मिस्र के साथ प्रयासों का नेतृत्व किया है. जिसके मुताबिक महासभा ने व्यक्तियों के खिलाफ उनके धर्म या विश्वास के आधार पर हिंसा के सभी घटनाओं की कड़ी निंदा की. साथ ही अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन में उनके धार्मिक प्रतीकों, पवित्र पुस्तकों, धार्मिक स्थलों और तीर्थस्थलों के खिलाफ किसी भी ऐसे घटना की निंदा की. जिससे धार्मिक प्रतीकों और पवित्र पुस्तकों के खिलाफ हिंसा के सभी घटनाओं की कड़ी निंदा करने के लिए महासभा द्वारा अपनाया गया पहला प्रस्ताव बना है. 


पारामर्शदाता ने कहा कि "मानवाधिकार परिषद के उस ऐतिहासिक प्रस्ताव में धार्मिक घृणा की सभी वकालत और अभिव्यक्तियों की निंदा की गई है. जिसमें हाल के सार्वजनिक और पूर्व-निर्धारित घटना भी शामिल हैं. जिन्होंने कुरान को अपमानित किया है और देशों से ऐसे कानूनों को अपनाने का आह्वान किया गया है. जो ऐसे घटनाओं के लिए जिम्मेदार लोगों को न्याय के कटघरे में लाने में सक्षम हों." 


पाकिस्तान के Counsellor बिलाल चौधरी ने कहा कि "पवित्र कुरान के अपमान की बार-बार हो रही घटनाओं से इस्लामोफोबिया बढ़ रहा है. ये घटना न केवल दुनिया के दो अरब से अधिक मुसलमानों की भावनाओं को भड़काने वाले हैं. बल्कि अंतर-धार्मिक सद्भाव और शांति को नुकसान पहुंचाने वाले कदम हैं."


उन्होंने कहा कि "ऐसी घटनाएं नस्लीय नफरत और ज़ेनोफोबिया की भी अभिव्यक्ति हैं और रोकने वाली कानूनी रोकथाम की अनुपस्थिति, निष्क्रियता और बोलने से कतराने से नफरत और हिंसा को और बढ़ावा मिलता है."


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