जयपुरः राजस्थान में सियासत और हुकूमत बदलने के साथ ही वहां का सामाजिक माहौल बदलने लगा है. मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव और उनके विरोध में उठने वाले स्वर मुखर हो रहे हैं. जयपुर की नंदपुरी कॉलोनी में मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को मकान किराए पर न देने का  बोर्ड सामने आया है. इस बोर्ड में हिंदुओं को मुस्लिमों के खिलाफ एकजुट होने की अपील की गई थी. नन्द कॉलोनी के पूरे इलाके में ऐसे पोस्टर और बैनर देखें जा सकते हैं.  हालांकि, इस बोर्ड के सामने आने के बाद पुलिस ने फौरन इसपर एक्शल लेते हुए बोर्ड तो हटा दिया है, लेकिन इस मामले में किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई न ही इस संदर्भ में कोई मुकदमा. दर्ज किया गया है.  


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एक पुलिस अधिकारी ने बुधवार को बताया कि हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ एकजुट होने की अपील करने वाले ये कथित पोस्टर लगभग 10 दिन पहले सामने आए थे. लोकल वार्ड पार्षद अनीता जैन ने बताया, “एक शख्स ने कुछ दिन पहले अपनी जायदाद एक मुस्लिम परिवार को बेच दी थी, जिसका कुछ स्थानीय लोगों ने विरोध किया था और उन्हीं में से कुछ लोगों ने ये पोस्टर लगाए थे. हालांकि, मामला संज्ञान में आने के तुरंत बाद उस बोर्ड को हटा दिया गया है." आगे उन्होंने कहा कि पुलिस द्वारा समझाने के बाद ये पोस्टर हटा लिए गए थे. इन पोस्टरों पर लिखा गया था, “हिंदुओं से अपील, संगठित रहो, संघर्ष करो. मुस्लिम जिहाद के खिलाफ एकजुट रहो." ब्रह्मपुरी के एसएचओ ईश्वर चंद्र पारीक ने बताया, “यह हादसा लगभग 10 दिन पहले की है. कुछ निवासियों ने मुसलमानों को घर किराए पर न देने और न बेचने को कहने वाले पोस्टर चिपकाए थे. हालांकि, उन्हें समझाया गया जिसके बाद इन पोस्टरों को हटा लिया गया है. हालांकि, इस संबंध में कोई मामला दर्ज नहीं किया गया." 


उल्लेखनीय है कि मुसलमानों के खिलाफ इस तरह के पोस्टर या बोर्ड लगना कोई नई बात नहीं है. मुंबई, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक में इस तरह के पोस्टर सामने आ चुके हैं, जहां मुसलमानों को किराए या मकान बेचने से रोकने की हिंदुओं से अपील की जा चुकी है. कई स्थानों पर ऐसे पोस्टर और आदेश भी जारी हो चुके हैं, जिनमें मुसलमानों से कोई लेने-देन या कारोबार न करने की अपील की जा चुकी है. ऐसी अपील दिल्ली में एक सार्वजनिक सभा में की जा चुकी है, जिसमें भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा और कई वरिष्ठ भाजपा नेता मौजूद थे. 


इस तरह के बयानों और अपील पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगा चुकी है, इसके बावजूद ऐसे बयान और अपील लगातार सामने आते रहते हैं, जो खुले तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है.