Supreme Court on Assam Bulldozer Action: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी थी. जिसके बाद कोर्ट ने आदेश दिया था कि किसी भी आरोपी या अतिक्रमण पर बुलडोजर चलाने से पहले सुप्रीम कोर्ट से इजाज लेनी होगी. इस बीच सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद असम सरकार ने बुलडोजर चलाकर 45 घरों को ध्वस्त कर दिया. जिसके बाद पीड़ित परिवार ने असम सरकार के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. 


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अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने के अनुरोध वाली याचिका पर आज यानी 30 सितंबर को असम सरकार और दूसरे से जवाब मांगा है, जिसमें कहा गया था कि उसकी इजाजत के बिना देश में तोड़ फोड़ की कार्रवाई नहीं होगी. जस्टिस बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने संबंधित पक्षों से मामले में यथास्थिति बनाए रखने को भी कहा. 


असम सरकार से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर को कहा था कि उसकी इजाजत के बिना एक अक्टूबर तक आरोपियों की संपत्तियों को ध्वस्त नहीं किया जाएगा, असम के सोनापुर में तोड़फोड़ की प्रस्तावित कार्रवाई को लेकर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने के अनुरोध वाली याचिका पर सोमवार को अदालत में सुनवाई हुई.


याचिकाकर्ताओं के वकील ने क्या कहा?
याचिकाकर्ताओं की तरफ से कोर्ट में पेश हुए सीनियर वकील हुजेफा अहमदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सरासर उल्लंघन हुआ है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि उसकी इजाजत के बिना तोड़ फोड़ की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए. जब पीठ ने कहा कि वह याचिका पर नोटिस जारी करेगी, तो अहमदी ने अनुरोध किया कि यथास्थिति बरकरार रखी जानी चाहिए. इसके बाद पीठ ने नोटिस जारी किया और संबंधित पक्षों से यथास्थिति बनाए रखने को कहा.


SC ने दी थी सख्त हिदायत
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कई याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि कई राज्यों में अपराध के आरोपियों की संपत्तियों को ध्वस्त किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर को इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा था कि अवैध तोड़ फोड का एक भी मामला संविधान की भावना के खिलाफ है. 


सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
पीठ ने कहा था, ‘‘सुनवाई की अगली तारीख तक, हम निर्देश देते हैं कि इस अदालत की इजाजत के बिना देश भर में कहीं भी तोड़फोड़ की कारवाई नहीं की जाएगी.’’ पीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई के लिए एक अक्टूबर की तारीख तय की थी. दो सितंबर को याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सवाल उठाया था कि किसी का घर सिर्फ इसलिए कैसे तोड़ा जा सकता है. क्योंकि वह किसी मामले में आरोपी है.


जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दायर की थी याचिका
अदालत जमीयत उलेमा-ए-हिंद और दूसरे द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें विभिन्न राज्यों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया कि दंगों और हिंसा के मामलों में आरोपियों की संपत्तियों को नष्ट न किया जाए.