Bilkis Bano Case: सुप्रीम कोर्ट 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगे के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंग रेप और उसके परिवार के मेंबर के कत्ल के मामले में 11 मुजरिमों को दी गई छूट को चैलेंज करने वाली अर्जियों पर गुरुवार को फिर से सुनवाई शुरू करने वाला है. मुजरिमों की रिहाई के खिलाफ मामले में जज बी.वी. नागरत्‍ना और उज्‍ज्‍वल भुइयां की बेंच के सामने आखिरी सुनवाई चल रही है, जिसमें बिलकिस बानो की तरफ से दायर अर्जियां भी शामिल हैं.


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चैलेंज किया जा सकता है फैसला


सुप्रीम कोर्ट ने 24 अगस्त को बयान दिया था कि जिन मुजरिमों की सजा माफी की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट के पहले के हुक्म के मुताबिक गुजरात सरकार ने सोच-विचार किया था, वे यह तलील नहीं दे सकते कि उन्हें रिहा करने वाले सजा माफी के हुक्म को बिल्कुल भी चैलेंज नहीं किया जा सकता. पहले के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को राज्य की 1992 की नीति में छूट के ताल्लुक से दो महीने के भीतर वक्त से पहले रिहाई के एप्लीकेशन पर सोच-विचार करने और फैसला लेने का हुक्म दिया था.


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लिमिटेड था फैसला


बेंच ने कहा कि उसका पिछला फैसला इस हद तक महदूद था कि मुजरमों की सजा माफी की अर्जी पर फैसला करने के लिए गुजरात सरकार को वाजिब ठहराया था और उसके बाद सजा माफी का हुक्म 'प्रशासनिक आदेश' की कटेगरी में आया था.


क्या है पूरा मामला?


मामले में मुजरिम करार दिए गए 11 लोगों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था. गुजरात सरकार ने अपनी छूट नीति के तहत उनकी रिहाई की इजाजत दी थी और दलील दिया था कि मुजरिमों ने जेल में 15 साल पूरे कर लिए थे.


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