जमावड़ा, उत्तराखंड:  हाल के घटनाक्रम के अनुसार, लंबे समय से चले आ रहे शत्रु संपत्ति मामले में उत्तराखंड सरकार ने एक एहम कदम उठाते हुए अफगानिस्तान के राजा याकूब खान के ऐतिहासिक महल के भीतर स्थित काबुल हाउस को सील कर दिया है. 400 करोड़ से अधिक रुपये की  कीमत से बने इस विशाल इमरत में रहने वाले 16 परिवारों को अब बेघर होना पड़ेगा. अवैध निर्माण के खिलाफ मुख्यमंत्री धामी की पहल पर राज्य में अवैध निर्माण से निपटने के लिए सरकार कमर कस चुकी है. जिसके कारण उन्होंने काबुल हाउस सील करने का बड़ा फैसला भी लिया है. कुछ दिन पहले ही काबुल हाउस के कब्ज़ेदारों को माकन खाली करने के लिए 15 दिन के नोटिस के साथ जमीन से अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिये गए थे.


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सरकार ने इस ऐतिहासिक महल को शत्रु संपत्ति घोषित करते हुए वहां रहने वाले 16 परिवारों को अलग करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. आश्चर्यजनक रूप से, इस फैसले को निवासियों के विरोध का सामना करना पड़ा जिन्होंने दावा किया कि उन्हें बेदखली के संबंध में देर से जानकारी प्रदान की गई थी. घटनाओं के क्रम में, कुछ राहत देते हुए, उच्च न्यायालय ने परिवारों को 1 दिसंबर तक अपने घर खाली करने की इजाज़त दे दी है. हालाँकि, काबुल हाउस को शत्रु संपत्ति घोषित करने को लेकर विवाद अभी भी बरकरार है.


क्या है काबुल हाउस का ऐतिहासिक महत्व?


काबुल हाउस, उत्तराखंड की प्राथमिक संरचना, मूल रूप से 1879 में राजा मोहम्मद याकूब खान द्वारा बनाई गई थी. जैसे ही पाकिस्तान का बटवारा हुआ, उनके वंशज पाकिस्तान में ही बस गए, जिससे संपत्ति पर 16 परिवारों का कब्जा हो गया, और वो सब वर्षों से वहां  रहने लगे. यह मामला चार दशकों से जिला मजिस्ट्रेट न्यायालय में विवाद का विषय रहा है. वंशजों के दावे और कानूनी कार्यवाही याकूब खान के वंशजों का तर्क ये है कि उन्होंने वास्तव में कभी संपत्ति नहीं छोड़ी और क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का दावा किया. उनके अनुसार, याकूब खान के 11 बेटे और 11 बेटियां थीं, जिनमें से कुछ पाकिस्तान चले गए, जबकि अन्य वहीं रह गए. राजा और मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान के बीच पुराने संबंध के अतिरिक्त दावों के साथ, काबुल हाउस को शत्रु संपत्ति घोषित करने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है.


महमूदाबाद की विरासत


राजा महमूदाबाद,  मूल रूप से उत्तर प्रदेश के कब्रिस्तानों में रहते थे. आजादी के बाद, उनके पिता, आमिर अहमद खान, इराक गए और बाद में 1957 में पाकिस्तानी नागरिकता प्राप्त करने से पहले ईरान में रहे. आश्चर्यजनक रूप से, उनके बेटे, मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान ने भारत में ही रहना चुना. 1965 के युद्ध के बाद, सरकार ने नखोन में राजा महमूदाबाद की संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया, जिससे चल रही कानूनी कार्यवाही और भी मुश्किल हो गई. जैसे ही काबुल हाउस की सीलिंग का खुलासा हुआ, उत्तराखंड में शत्रु संपत्ति मामलों से जुड़ी ऐतिहासिक और कानूनी पहेलियों के उलझे हुए  जाल पर प्रकाश डालता है, जिसका इसमें शामिल परिवारों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला निस्संदेह क्षेत्र में इसी तरह के विवादों के लिए एक मिसाल कायम करेगा.