Waqf Property: इन दिनों 'वक्फ' शब्द सुर्खियों में है. हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ने हुबली शहर के एक ईदगाह में गणेश पूजा की इजाजत दी थी. वक्‍फ बोर्ड का दावा था कि यह मुसलमानों की संपत्ति है, लेकिन आदालत के मुताबिक ईदगाह वक्‍फ की संपत्ति के तौर पर यह दर्ज नहीं है. वहीं, कुछ दक्षिणपंथी हिंदूवादी संगठनों ने सोशल मीडिया पर ये भ्रम फैला रखा है कि वक्फ की सम्पत्ति सरकार की है और मुसलमानों और मुस्लिम संगठनों ने इसपर अवैध कब्ज़ा जमा रखा है. आज हम आपको बताते हैं कि अल्लाह के नाम पर 'वक्फ' की गई सम्पत्ति आखिर किसकी है और ये क्या होती है?


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तो क्या होती है वक्फ की गई संपत्ति?


इस्लामिक नियम के तहत जब कोई शख्स अपनी किसी संपत्ति को अल्लाह के नाम पर सार्वजनिक फायदे के लिए दान कर देता है, तो उसे वक्फ करना कहते हैं. वक्फ की हुई संपत्ति पर किसी खास शख्स का मालिकाना हक नहीं रह जाता है. इस संपत्ति को दान करने का मकसद मुसलमानों या आम लोगों को फायदा पहुंचाना होता है. इस्लाम धर्म के मुताबिक अगर किसी भी संपत्ति को दान कर दिया जाता है, उसके बाद उस संपत्ति को दान करने वाले शख्स की मौत के बाद उसके परिवार वालों का उस संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं रहता है. बहुत से ऐसे मुसलमान हुए हैं, जिनके बाल-बच्चे नहीं थे तो उन्होंने अपनी संपत्ति वक्फ कर दी. कुछ मालदार मुसलमान भी सार्वजनिक हित के लिए अपनी संपत्ति या उसका कुछ हिस्सा वक्फ कर देते हैं. इसमें ज़्यादातर लोग ज़मीन को वक्फ कर देते हैं.   


क्या हैं वक्फ के मायने?


वक़्फ़ एक अरबी शब्द है इसके मायने होते हैं ठहरना. अगर कोई संपत्ति अल्लाह के नाम पर वक्फ की जाती है तो यह हमेशा के लिए अल्लाह के नाम हो जाती है. इसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने साल 1998 में कहा था कि 'एक बार जो संपत्ति वक़्फ़ हो जाती है वो हमेशा वक़्फ़ ही रहती है.' वक़्फ़ संपत्ति की ख़रीद फ़रोख़्त नहीं हो सकती.


की संपत्ति का क्या इस्तेमाल होता है?


मान लीजिए किसी शख्स के पास दो घर हैं. एक घर में वह रहता है और दूसरे घर को वह वक्फ कर देता है तो उस घर का इस्तेमाल मस्जिद बनाने के लिए, कब्रिस्तान बनाने के लिए, किसी गरीब को उसमें बसाने के लिए, असपताल खोलने के लिए किया जा सकता है.


क्या वक्फ कर सकते हैं?


वक्फ करने की पहली शर्त है कि वह शख्स जो वक्फ कर रहा है, वह संपत्ति उस व्यक्ति के नाम पर होनी चाहिए. वक्फ करने के मामले में लोग कोई भी चल-अचल संपत्ति दान कर सकते हैं. घर, खेत, मैदान, लाइब्रेरी,  किताबें या कोई भी इस्तेमाल की गई वस्तु.


क्या करता है वक़्फ बोर्ड?


केंद्र में मौजूद वक़्फ़ बोर्ड राज्यों में मौजूद वक़्फ़ बोर्ड को दिशा-निर्देश प्रदान करने का काम करते हैं. केंद्रीय वक़्फ़ बोर्ड से दिशा-निर्देश प्राप्त करके राज्य वक़्फ़ बोर्ड केंद्र के अनुसार कार्य करते हैं, और प्रत्येक राज्य के वक़्फ़ की संपत्ति का पूरा ब्यौरा केंद्र सरकार तक पहुँचाते हैं. वक्फ बोर्ड वक्फ की गई संपत्ति का संरक्षण करता है, और उसका हिसाब रखता है. हिंदुस्तान में वक़्फ़ की संपत्तियों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय स्तर पर एक स्वायत्त निकाय है जिसे सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल कहते हैं. इसके अलावा राज्य स्तर पर वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए वक़्फ़ बोर्ड हैं. भारत में कुल 32 वक़्फ़ बोर्ड हैं.


वक़्फ़ के लिए लागू कानून


1954 में संसद ने वक़्फ़ एक्ट 1954 बनाया था. इस कानून में पहला अमेंडमेंट 1995 में किया गया और नया अमेंडमेंट साल 2013 में लागू किया गया. इस एक्ट के मुताबिक,  एक सर्वे कमिश्नर रखा जाता है जो वक़्फ़ में प्राप्त दान की वस्तुओं का पूरा ब्योरा लाकर राज्य बोर्ड को प्रदान करते हैं. इसी तरह पूरे भारत में वक़्फ़ बोर्ड के अलग-अलग ऑफिस बनाए जाते हैं, जिसमें कई सारे व्यक्ति काम करते हैं.  इस प्रकार वह एक सरकारी विभाग बन जाता है. 


कैसे वक्फ होती है प्रॉपर्टी?


जानकारों के मुताबिक किसी भी प्रॉपर्टी को वक्फ करने से पहले उसका वक्फनामा तैयार होता है जिसमें संपत्ति को वक्फ किए जाने का मकसद तैयार होता है. वक़्फ़ बोर्ड संपत्ति को रिकॉर्ड में दर्ज कर लेता है, इसके बाद इसे सरकारी गजट में नोटिफाई कराया जाता है. 


वक्फ बोर्ड की संपत्ति को हड़प लिया


वक़्फ़ मुस्लिम समुदाय की रीढ़ है. वक्फ बोर्ड के पास अकूत सम्पत्ति है. इसकी संपत्ति का अगर सही इस्तेमाल किया जाए तो इससे मुस्लिम वर्ग को बहुत फायदा हो सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है.  इसकी कुछ सम्पत्ति सरकार के पास है. वक्फ की सपत्तियों पर सरकार का नियंत्रण है. इस ज़मीन पर सरकारी दफ्तर बने हुए हैं. अधिकतर संपत्ति पर अब गैर-कानूनी कब्ज़ा भी हो चुका है. ऐसा नहीं है कि इसपर सिर्फ सरकार या अन्य समुदाय के लोगों ने कब्ज़ा किया है, बल्कि मुसलमानों ने खुद भी वक्फ बोर्ड की संपत्ति को हड़प लिया है. 


वक्फ की सम्पत्ति से इमामों को मिलती है सैलरी 


देशभर में कई मस्जिदों के पास अपनी वक्फ़ की हुई ज़मीन है. इसी से मस्जिद के रखरखाव का काम और वहां के इमामों को सैलरी दी जाती है. इस वजह से कुछ हिंदूवादी संगठन सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाते हैं कि सरकार अपने खजाने से इमामों को सैलरी दे रही है, जबकि मंदिर में पुरोहित का काम करने वाले पंडितों को सैलरी नहीं देती है.