यरूशलम: पिछले 8 माह से फिलिस्तीन में रोज़ इस्राइली बमबारी में मारे जा रहे इंसानों की लाशों पर मौन पूरा अरब वर्ल्ड येरुसलम में अल अक्सा मस्जिद में यहूदियों के घुसने पर अचानक बेचैन हो रहा है. पूरी दुनिया के मुसलमान इसराइल के इस नए कदम की आलोचना कर रहे हैं. यहाँ तक कि अरब मुल्कों में आपस में बगावत रखने वाले देश भी इस मुद्दे पर एक सुर मिलकर इसराइल की आलोचना कर रहा है. 


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इस्लाम, यहूदी और ईसाई तीनों धर्म के लोग अल अक्सा पर करते हैं अपना दावा 
दरअसल, अल-अक्सा मस्जिद का जिक्र इस्लाम, यहूदी और ईसाई तीनों धर्मों की किताबों में हैं. तीनों धर्मों के पैग़म्बर का इससे रिश्ता है. इसलिए मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों तीनों के लिए यह मस्जिद काफी अहमियत रखती है. ये मस्जिद लंबे अरसे से तीनों पक्षों के बीच टकराव और हिंसा का केंद्र रही है.अरब और दुनिया भर के मुसलमान सऊदी अरब की मक्का में स्थित मस्जिद के बनने के पहले अल अक्सा मस्जिद की तरफ ही अपना मुहं करके नमाज़ पढ़ते थे. मुसलमान मानते हैं कि पैगम्बर मुहम्मद ( स.) को जब मेराज पर ले जाया गया था, यानी जब उनका सातवें आसमान पर ईश्वर से संवाद हुआ, तो उन्हें इसी जगह से ले जाया गया था. इस मस्जिद को बनाने वाले इब्राहिम को यहूदी, मुसलमान और ईसाई सभी अपना पैगम्बर मानते हैं. ईसा भी यहीं पैदा हुए थे और उन्हें सूली पर भी यहीं चढ़ाया गया था. जबकि यहूदी इसे हज़रत दाऊद की जन्मस्थली मानते हैं. यहूदी और मुसलमान दोनों अपनी-अपनी धार्मिक किताबों में किये गए दावों के मुताबिक ये मानते हैं कि इस इलाके से मुसलमान और यहूदी दोनों का सफाया होगा और एक विशेष धर्म का कब्ज़ा होगा. इसके अलावा इसी मस्जिद के दो अन्य धरोहर हैकल सुलेमानी और ताबूते सफीना पर भी तीनों धर्मों के लोग अपना कब्ज़ा चाहते हैं. सभी का मानना है कि ये दो धरोहर जिनके पास होगा, वो देश और कौम दुनिया में तरक्की करेगा और उनका अधिपत्य स्थापित होगा. मुसलमान और ईसाई आज मानते हैं कि ये दोनों धरोहर आज इसराइल के पास है. यही वजह है कि दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे को मरने- मारने पर उतारू रहते हैं, और वो धार्मिक तौर पर भी इसे बुरा नहीं मानते हैं.