सलमान रश्दी की विवादित किताब का भारत में मिलने का रास्ता हुआ साफ; HC ने दिया ये फैसला
Salman Rashdi Book: सलमान रश्दी की किताब में कथित तौर पर इस्लाम के खिलाफ बाते लिखी हैं. इसीलिए इस पर भारत बैन लगा दिया गया था, लेकिन अब दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले के बाद इसका भारत में मिलने का रास्ता साफ हो रहा है.
Salman Rashdi Book: सलमान रश्दी की विवादित किताब 'द सैतानिक वर्सेस' अब भारत में मिलने का रास्ता साफ होता नजर आ रहा है. क्योंकि अब इस किताब पर 1988 में लगाया गया बैन हट गया है. दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि कस्टम डिपार्टमेंट की तरफ से लगाया गया बैन नोटिफिकेशन अब गायब हो चुका है. 5 नवंबर को अदालत ने कहा कि ऐसे में अब मान लेना होगा कि किताब पर कोई बैन है ही नहीं. इस तरह से अब भारत में सलमान रश्दी की किताब बिकने का रास्ता साफ हो गया है.
अदालत का आदेश
दिल्ली हाई कोर्ट ने पाया कि सेंट्रल बोर्ड ऑफ इंडायरेक्ट टैक्सेज और कस्टम (CBIC) साल 2019 से नोटिफिकेशन पेश करने में नाकाम रहा है. किताब पर लगे बैन को हटाने के लिए याचिका दाखिल की गई थी. लेकिन बैन की अधिसूचना पेश नहीं कर पाने की हालत में जजों ने कहा कि ऐसे में किताब पर पाबंदी को जारी रखना नामुम्किन है.
किताब पर बैन
ख्याल रहे कि साल 1988 में कानून का हवाला देकर राजीव गांधी सरकार ने सलमान रश्दी की किताब पर पाबंदी लगा दी थी. अदालत में अर्जी लगाने वाले संदीपन खान ने अदालत से कहा कि वह केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड के 5 अक्टूबर, 1988 को जारी अधिसूचना की वजह से किताब नहीं खरीद पा रहे हैं. इसमें सीमा शुल्क अधिनियम के मुताबिक देश में किताब के आयात पर पाबंदी लगा दी गई थी. हालांकि, अब अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि किताब पर बैन की कोई अधिसूचना नहीं मिली, जिसकी वजह से अब भारत में ये किताब मिल सकती है.
क्या है पूरा मामला
आपको बता दें कि साल 1988 में प्रकाशित होने के बाद 'द सैटेनिक वर्सेज' को इस्लाम से पहले की देवी-देवताओं और पैगंबर मुहम्मद के चित्रण की वजह से काफी आलोचना झेलनी पड़ी. इस किताब के खिलाफ दुनिया भर में विरोध प्रदर्शन हुए. कई मुस्लिम नेताओं ने इसे ईशनिंदा करार देते हुए इसकी निंदा की. उस वक्त ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने रुश्दी की मौत का फतवा जारी किया. इसी दौरान किताब के जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी का कत्ल करा दिया. भारत में, सैयद शहाबुद्दीन और कांग्रेस नेता आलम खान जैसे प्रमुख लोगों ने ईशनिंदा के आरोपों का हवाला देते हुए पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने की मांग की. इसके बाद भारत सरकार ने 1988 में पुस्तक के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया.