UAE में इस्लामी कानूनों में हुआ बदलाव; लड़कियों की शादी की उम्र में किया गया इजाफा
यूनाइटेड अरब अमीरात (UAE) ने शादी, परिवार, संपत्ति जैसे कानूनों में बदलाव कर दिया है. नए कानून के मुताबिक अब विवाह के लिए लड़कियों की न्यूनतम आयु सीमा 18 साल होगी. इसके साथ ही माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करने या उनकी उपेक्षा करने में जेल और जुर्माना का प्रावधान किया गया है.
दुबई: अरब देश लगातार सामाजिक सुधारों को लागू कर रहे हैं. महिलाओं और उनकी सुरक्षा को लेकर किये जा रहे सुधार वर्षों पुरानी उस मान्यता को ख़ारिज कर रहे हैं कि इस्लामी कानून को मानने वाले अरब मुल्क सुधारवादी नहीं होते हैं. सऊदी अरब में महिला अधिकारों में इजाफा होने के बाद अब यूनाइटेड अरब अमीरात भी सऊदी अरब की राह पर चल पड़ा है. बुधवार को यूनाइटेड अरब अमीरात सरकार ने महिलाओं के हक़ में कई कानूनों में बदलाव का आदेश दिया है, जिसकी पूरी दुनिया में सराहना की जा रही है.
शादी की उम्र में इजाफा
मूल इस्लाम के मुताबिक शादी की कम से कम उम्र 12 साल या लड़कियों को माहवारी आना को शादी की न्यूनतम उम्र निर्धारित की गई है. समुदाय की अधिकांश आबादी इस उम्र में लड़कियों की शादी नहीं करता है, लेकिन गरीबी और पिछड़ेपन में इस्लाम की आड़ में कम उम्र में लड़कियों की शादी के मामले सामने आते रहते हैं. ऐसे में यूनाइटेड अरब अमीरात सरकार के जरिये शादी की न्यूनतम उम्र 18 करने से बाकी के इस्लामिक देशों और दुनिया में सकारात्मक सन्देश जा सकता है. सरकार ने इस नियम को सख्ती से लागू करने की बात कही है. सरकार ने 18 साल से कम उम्र के नाबालिगों की संपत्ति की हिफाज़त करने, बिना अनुमति के नाबालिग के साथ यात्रा करने, विरासत को बर्बाद करने और संपत्ति के धन का गबन करने से संबंधित अपराधों के लिए कड़े दंड का प्रावधान किया है. माता- पिता के तलाक के बाद बच्चे के बेहतर परवरिश और उसके मर्ज़ी का सम्मान करते हुए ये प्रावधान किया गया है कि 15 साल का होने पर बच्चे को यह चुनने का अधिकार होगा कि वह किस माता-पिता में से किसके साथ रहना चाहता है?
बढाए गए तलाक लेने के आधार
इस्लाम में तलाक के आधार का स्पष्ट उल्लेख किया गया है, लेकिन सरकार ने इसमें बदलाव करते हुए तलाक के कुछ नए आधार जोड़ दिए हैं. अगर पति या पत्नी किसी नशीली दवा, या शराब का आदी है तो दोनों में से किसी एक को तलाक का अनुरोध करने का अधिकार होगा. इस बिना पर वो एक दूसरे से तलाक ले सकता है. इस तरह सरकार ने परिवार और स्त्री- पुरुष दोनों के हितों को ध्यान में रखते हुए ये प्रावधान किया है.
माता-पिता की देखभाल ने करने पर जेल और जुर्माना
माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार, उपेक्षा या उन्हें बिना देखभाल के त्यागने पर दंड का प्रावधान किया गया है. ये दंड आवश्यकता पड़ने पर वित्तीय सहायता प्रदान करने से इनकार करने की स्थिति में भी लागू होंगे. उत्तराधिकार, वसीयत, और गुजारा भत्ता और संरक्षण से संबंधित ज़रूरी या अस्थायी मामलों को पारिवारिक सुलह और मार्गदर्शन केंद्रों को भेजे जाने से छूट दी गई है. न्यायाधीश को इस तरह के मुकदमों की प्रक्रियाओं में तेजी लाने के केस को पारिवारिक सुलह और मार्गदर्शन केंद्रों को संदर्भित करने का विवेकाधिकार दिया है. सरकार ने माना है की इस नए कानून का मकसद पारिवारिक संबंधों और सामाजिक स्थिरता को मजबूत करना है, साथ ही परिवार के सदस्यों के अधिकारों की सुरक्षा को भी बढ़ाना है.