नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2019 के जामिया नगर हिंसा मामले में शरजील इमाम, आसिफ इकबाल तन्हा और 9 अन्य को बरी किए जाने के आदेश को रद्द कर दिया है. ट्रायल कोर्ट ने 4 फरवरी को सुनाए गए एक आदेश में 11 आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया था, जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने लोअर कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. 


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हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया शरजील इमाम, आसिफ इकबाल तन्हा और जरगर सहित 11 आरोपियों में से नौ के खिलाफ दंगा करने और अवैध रूप से जमा होने का इल्जाम बनता है. न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा, ‘‘अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार से इनकार नहीं है, लेकिन यह अदालत अपनी जिम्मेदारी को लेकर जागरूक है और इस मुद्दे में इस तरह से फैसला करने की कोशिश की है. शांतिपूर्ण तरीके से एकत्र होने का अधिकार शर्तों के अधीन है.’’ अदालत के विस्तृत फैसले का अभी इंतजार है.  


अदालत ने मोहम्मद कासिम, महमूद अनवर, शहजर रजा, उमैर अहमद, मोहम्मद बिलाल नदीम, शरजील इमाम, चंदा यादव, सफूरा जरगर पर आईपीसी की धारा 143, 147, 149, 186, 353, 427 के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत आरोप लगाया है. न्यायमूर्ति शर्मा ने मोहम्मद शोएब और मोहम्मद अबुजार पर आईपीसी की धारा 143 के तहत इल्जाम लगाए और अन्य सभी धाराओं से आरोपमुक्त कर दिया है. 


आसिफ इकबाल तन्हा के मामले में अदालत ने उन्हें धारा 308, 323, 341 और 435 से मुक्त कर दिया और अन्य धाराओं के तहत आरोप तय किए. विस्तृत आदेश के कॉपी का अभी इंताजार है. इस मामले में न्यायाधीश शर्मा ने 23 मार्च को याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था.


गौरतलब है कि दिसंबर 2019 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पुलिस और नागरिकता संशोधन कानून विरोधी प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प के बाद हिंसा भड़क उठी थी.
इस मामले में सभी 11 आरोपी व्यक्तियों -शरजील इमाम, तन्हा, जरगर, अबुजर, उमैर अहमद, मोहम्मद शोएब, महमूद अनवर, मोहम्मद कासिम, मोहम्मद बिलाल नदीम, शहजार रजा खान और चंदा यादव को ट्रायल कोर्ट ने 4 फरवरी को आरोपमुक्त कर दिया था, लेकिन हालांकि, इसमें मोहम्मद इलियास के खिलाफ गैरकानूनी असेंबली और दंगे के आरोप तय किए थे.


अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) वर्मा ने आरोपी व्यक्तियों को बरी करते हुए पुलिस की खिंचाई करते हुए कहा था कि पुलिस अपराध करने के पीछे वास्तविक अपराधियों को पकड़ने में असमर्थ थी, लेकिन निश्चित रूप से इन 11 आरोपियों को “बलि का बकरा“ बनाने में कामयाब रही है. निचली अदालत के न्यायाधीश ने कहा था कि आप अदालत में साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं ला पाए कि ये व्यक्ति उस भीड़ का हिस्सा थे जिसने अपराध किया था. 


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