UP Lok Sabha Elections 2024: आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के पहले फेज की वोटिंग की तारीख नजदीक आ रही है और उत्तर प्रदेश में इन चुनावों में पश्चिमांचल की कई मुस्लिम बहुल सीट पर सबकी निगाहें टिक गई है.  इसमें  रामपुर, मुरादाबाद और संभल समेत कई निर्वाचन क्षेत्र हैं , जहां मुस्लिम वोटरों की हिस्सेदारी 23 से 42 फीसदी के बीच है. साल 2019 में हुए पिछले लोकसभा चुनाव में मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी (BSP), यूपी के पूर्व सीएम की अगुआई वाली समाजवादी पार्टी (SP) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) गठबंधन ने पश्चिमांचल के मुस्लिम बहुल इलाके में खासी सफलता हासिल की थी, लेकिन इस बार सियासी समीकरण बिल्कुल बदल गए हैं.


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प्रदेश में जहां बहुजन समाज पार्टी अकेले चुनावी मैदान में है, वहीं पश्चिमांचल की जाट बिरादरी पर पकड़ रखने वाला रालोद इस बार भाजपा के साथ खड़ा है, जबकि सपा उस कांग्रेस के साथ गठबंधन कर मैदान में है जो पिछले तीन दशक से भी ज्यादा वक्त से प्रदेश में अपनी खोई जमीन तलाश रही है. सभी पार्टियां और गठबंधन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी जीत को यकीनी बनाने के लिए लिए रणनीति बना रहे हैं, लेकिन पिछले कई चुनावों के रुझानों पर नजर डालें तो पश्चिमांचल में ध्रुवीकरण एवं जातीय समीकरण ही हार-जीत का आधार रहे हैं.


रामपुर में मुस्लिम वोटरों की संख्यां सबसे ज्यादा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिन लोकसभा इलाके में मुस्लिम वोटरों का बाहुल्य है, उनमें सबसे ज्यादा रामपुर में  42 फीसदी, अमरोहा में 32 फीसदी, सहारनपुर में 30 फीसदी, बिजनौर, नगीना और मुरादाबाद 28-28 फीसदी, मुजफ्फरनगर में 27 फीसदी , कैराना और मेरठ में 23-23 फीसदी और सम्भल में 22 फीसदी शामिल हैं. इसके अलावा बुलंदशहर, बागपत और अलीगढ़ में मुस्लिम मतदाताओं की हिस्सेदारी 19-19 फीसदी हैं.


मुस्लिम वोटर परिणाम बदलने का रखते हैं माद्दा
अगर मुस्लिम वोटर एकजुट होकर किसी एक पार्टी या अलायंस को वोट दें तो वे रिजल्ट बदलने का माद्दा रखते हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने मुस्लिम-दलित बहुल सहारनपुर, बिजनौर, नगीना और अमरोहा सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि उसके गठबंधन की सहयोगी दल सपा को मुरादाबाद, रामपुर और संभल सीटें मिली थीं. हालांकि, पश्चिमांचल की कई सीटों पर मुस्लिम वोटरों के बिखराव का फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला था, और उसने मुस्लिम वोटरों की बहुलता के बावजूद मुजफ्फरनगर, कैराना, मेरठ, बुलंदशहर, बागपत और अलीगढ़ की सीटों पर जीत दर्ज की थी.


सपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती
वहीं, बदले सियासी हालात में सपा और कांग्रेस गठबंधन के सामने सबसे बड़ी चिंता मुस्लिम वोटों के बिखराव को रोकने की होगी, क्योंकि मुस्लिम बहुल सीटों पर उसकी जीत की संभावना, तभी बन सकती है जब मुस्लिम वोट उसके सपोर्ट में एकजुट हों.  पॉलिटिकल एक्सपर्ट परवेज अहमद मानते हैं कि इस बार मुस्लिम वोटर्स को अपने पक्ष में एकजुट रखना समाजवादी पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. उसकी एक बड़ी वजह यह है कि सपा साल 2019 के बाद से अब तक मुसलमान से जुड़े मुद्दों को लेकर उतनी मुखर नहीं रही है जितना कि उससे उम्मीद की जाती है. उन्होंने कहा कि एक बात यह भी है कि BSP ने हर उस सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है, जहां मुस्लिमों के बाद दलित मतदाताओं का दबदबा है. उन्होंने कहा कि रालोद के एनडीए (राजग) के साथ जाने से वह जाट वोटर भी भाजपा से जुड़ गया है जो अभी तक उससे दूर था.


सपा का दावा
हालांकि, समाजवादी पार्टी स्पोक्सपर्सन फखरुल हसन का दावा है कि मुस्लिम मतदाता अब भी पूरी मजबूती से सपा के साथ खड़े हैं. वहीं, जयंत चौधरी की पार्टी रालोद के भाजपा के साथ जाने का भी सपा गठबंधन की संभावनाओं पर कोई असर नहीं होगा क्योंकि भाजपा और रालोद का गठजोड़ नैसर्गिक नहीं है. साथी पिछले कई चुनावों में यह साबित हुआ है कि RLD का अब उतना असर नहीं रहा जितना की उससे उम्मीद की जाती है.


उन्होंने दावा किया कि साल 2019 में हुए पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा को सपा के मुस्लिम वोटों का फायदा मिला था, जिसकी बदौलत वह 10 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. साल 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन नहीं था और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अनेक मुस्लिम बहुल सीटों पर सपा ने बसपा को पकड़ते हुए जीत हासिल की थी, इसलिए यह कहना सही नहीं है कि मुस्लिम वोटरों का सपा से मोह भंग हो रहा है.


मुस्लिम वोटरों के लिए BJP की नई रणनीति 
दूसरी तरफ, भाजपा लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत हासिल करने की रणनीति के तहत मैदान में उतर रही है. वे मुस्लिम मतदाता तो अपने पाले में करने के लिए बूथ लेवल पर कई टीमें गठित की हैं.  भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने बताया, "लोकसभा चुनाव में लगभग 20 हजार ऐसे बूथ थे जहां भाजपा हारी थी इस बार इन सभी बूथों पर 11-11 सदस्यों की टीमें बनाई गई हैं, जिनमें महिलाओं को भी शामिल किया गया है." उन्होंने दावा किया, "पिछली बार 10 फीसदी मुस्लिम वोटर भाजपा के साथ थी, इस बार 15 फीसदी का लक्ष्य है. खासकर पसमांदा मुस्लिम को भाजपा के साथ जोडा जा रहा है."  


सपा-कांग्रेस ने मुस्लिम बहुल सीटों पर इन्हें दिया टिकट
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुस्लिम बहुल सीटों पर अलग-अलग पार्टियों द्वारा घोषित प्रत्याशियों पर गौर करें तो सत्तारूढ़ भाजपा ने इस बार भी एक भी मुसलमान को कैंडिडेट नहीं बनाया है. वहीं, सपा ने बिजनौर से दीपक सैनी, मुरादाबाद से रुचि वीरा, रामपुर से मौलाना मुहिबउल्लाह नदवी, संभल से मरहूम शफीकुर रहमान बर्क के पोते व विधानसभा सदस्य  जियाउर रहमान बर्क को उम्मीदवार बनायाहै. इसके अलावा बागपत संसदी सीट से मनोज चौधरी, बिजनौर लोकसभा सीट से यशवीर सिंह, नगीना सीट से मनोज कुमार, मेरठ निर्वाचन क्षेत्र से भानु प्रताप सिंह, अलीगढ़ से बिजेंद्र सिंह और कैराना से चौधरी इकरा हसन को मैदान में उतारा है, जबकि मुजफ्फरनगर सीट से हरेंद्र मलिक को उम्मीदवार बनाया है. वहीं,  सपा ने अमरोहा, सहारनपुर और बुलंदशहर की सीटें गठबंधन के तहत कांग्रेस को दी हैं.कांग्रेस ने अमरोहा से मौजूदा सांसद कुंवर दानिश अली, सहारनपुर से इमरान मसूद और बुलंदशहर शिवराम वाल्मीकि को टिकट दिया है.


कांग्रेस-सपा के लिए राह अभी भी मुश्किल
साल 2019 के पिछले चुनावों के नतीजों को देखें तो जाहिर होता है कि भाजपा को उन निर्वाचन क्षेत्रों में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जहां मुस्लिम वोट 30 से 42 फीसदी तक हैं. हालांकि, इसके बाद भी सपा-कांग्रेस के लिए चुनौतियां बनी हुई हैं. अब देखना यह दिलचस्प होगा कि ऊंट की किस करवट बैठता है.


पहले चरण में इन सीटों पर होगा मतदान
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में उत्तर प्रदेश की सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत सीटों के लिए 19 अप्रैल को वोटिंग होगी.