नई दिल्लीः अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS -Delhi) के एक रिसर्च में दावा किया गया है कि भारत में 12 साल से कम उम्र के बच्चों की एक बड़ी वजह उनका ऊंचाई से गिर कर मरना है. अध्ययन के मुताबिक, 12 साल से कम उम्र के बच्चों में रोकी जा सकने वाली मौतों का सबसे प्रमुख कारण ऊंचाई से गिरना है और उनमें भी ज्यादातर मामलों में बालकनी से गिरना शामिल है. एम्स-दिल्ली ने बालकनी से गिरने से जुड़ी बच्चों की मौत को लेकर लोगों में बेदारी लाने के लिए एक ‘सुरक्षित बालकनी, सुरक्षित बच्चा’ नाम से एक मुहिम की शुरुआत की है. 

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बालकनी से गिरने की वजह से होती है मौत 
एम्स की पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजी की प्रोफेसर डॉ. शेफाली गुलाटी ने कहा कि एम्स में 16 साल से कम उम्र के बच्चों के बीच, महामारी विज्ञान के एक रिसर्च के मुताबिक, चार साल की अवधि में सिर में चोट लगने वाले कुल 1,000 बच्चों को एम्स के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया है. रिसर्च में शामिल गुलाटी ने कहा, ‘‘लड़कियों की तुलना में लड़के सिर की चोट से दो गुने से ज्यादा प्रभावित होते हैं और उनमें से 60 फीसदी से ज्यादा बच्चों के सिर में चोट ऊंचाई या बालकनी से गिरने की वजह से होती है.’’ उन्होंने कहा कि बहुत से ऐसे बच्चे गरीब तबकों से आते हैं, जहां हादसे के वक्त माता-पिता में से एक अपने काम पर होता है, जबकि दूसरा कहीं और होता है.
एम्स के न्यूरोसर्जरी के प्राध्यापक और रिसर्चर डॉ. दीपक गुप्ता ने कहा कि भारत में प्रत्येक मिनट में सिर में चोट लगने से एक शख्स की मौत हो जाती है, और इनमें 30 फीसदी बच्चे शामिल होते हैं. गुप्ता ने बताया कि बच्चों के सिर में चोट लगने के सभी मामलों में से 60 फीसदी मामले ऊंचाई से गिरने की वजह होती है. 

बच्चों की ऊंचाई से दोगुनी बालकनी की रेलिंग होनी चाहिए
डॉ. गुप्ता ने सलाह दी है कि बच्चों की ऊंचाई से दोगुनी बालकनी की रेलिंग होनी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘बच्चे अक्सर बालकनी में घर की रेलिंग पर चढ़ जाते हैं और गिर जाते हैं. ऐसे कई बच्चों की मौत हो जाती है, या उनके सिर में गंभीर चोट लग जाती है. इस तरह की मौतों और चोटों को पूरी तरह से रोका जा सकता है.’’ 
डॉ. गुप्ता ने कहा, ‘‘इस मुहिम के तहत हम चाहते हैं कि ‘सुरक्षित बालकनी और सुरक्षित बच्चे’ का संदेश 10 साल से कम उम्र के बच्चों वाले प्रत्येक घर तक पहुंचे.’’ मुहिम के हिस्से के तौर पर, चिकित्सकों ने स्कूलों का दौरा करने, छात्रों, माता-पिता और शिक्षकों के साथ बातचीत करने और विभिन्न सेमिनार और प्रतियोगिताओं को आयोजित करने की योजना बनाई है. डॉ. गुप्ता ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि और लोग हमसे जुड़ें और इसे एक राष्ट्रीय मुहिम बनाएं.’’


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