Akbar Allahabadi Shayari: `इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं`; अकबर इलाहाबादी के शेर
Akbar Allahabadi Shayari: अकबर इलाहाबादी ने मौजूदा वक्त की हालत पर तंज कसा है. उन्होंने उन्हें भी बहुत खरी खोटी सुनाई है जो कौम के दर्द के नाम पर अपनी जेबें भरते हैं.
Akbar Allahabadi Shayari: अकबर इलाहाबादी उर्दू के मशहूर शायर थे. उन्होंने अपनी शायरी में खूब कटाक्ष किया है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने कई शेर लिखे जो बहुत मशहूर हुए. अकबर ने अपनी इब्तिदाई तालीम घर पर ही पाई. उन्हें उनके वालिद ने पढ़ाया. उन्होंने 15 साल की उम्र में अपने से दो या तीन साल बड़ी लड़की से शादी की थी और जल्द ही उनकी दूसरी शादी भी हुई. अकबर ने वकालत की डिग्री हासिल की और नौकरी भी की.
मोहब्बत का तुम से असर क्या कहूँ
नज़र मिल गई दिल धड़कने लगा
तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है
बला के पेच में आया हुआ है
ये दिलबरी ये नाज़ ये अंदाज़ ये जमाल
इंसाँ करे अगर न तिरी चाह क्या करे
नौकरों पर जो गुज़रती है मुझे मालूम है
बस करम कीजे मुझे बेकार रहने दीजिए
लोग कहते हैं बदलता है ज़माना सब को
मर्द वो हैं जो ज़माने को बदल देते हैं
मौत आई इश्क़ में तो हमें नींद आ गई
निकली बदन से जान तो काँटा निकल गया
ये है कि झुकाता है मुख़ालिफ़ की भी गर्दन
सुन लो कि कोई शय नहीं एहसान से बेहतर
हादसे अपने तरीक़ों से गुज़रते ही रहे
क्यों हुआ ऐसा ये हम तहक़ीक़ करते ही रहे
इस गुलिस्ताँ में बहुत कलियाँ मुझे तड़पा गईं
क्यूँ लगी थीं शाख़ में क्यूँ बे-खिले मुरझा गईं
इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है
इश्वा भी है शोख़ी भी तबस्सुम भी हया भी
ज़ालिम में और इक बात है इस सब के सिवा भी
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना