नई दिल्ली: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) की तारीख बेहद दिलचस्प है. इस इदारे का नाम भी पहले अलग था और इसमें गैर मुस्लिम स्टूडेंट्स के लिए भी जगह नहीं थी. बाद में जब नाम बदला तो एडमिशन के कानून भी बदल गए और इस इदारे से तमाम हिंदू साहित्यकार और महान हस्तियां भी पढ़कर निकलीं.


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कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की तर्ज पर बना
जिस वक्त इस यूनिवर्सिटी का कयाम किया गया था उस वक्त प्राइवेट यूनिवर्सिटी बनाने की इजाज़त नहीं मिलती थी. इसलिए पहले इसे मदरसे के तौर पर कायम किया गया. ये कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की तर्ज पर ब्रिटिश राज के समय बनाई गई पहला आला तालीमी इदारा था. इस यूनिवर्सिटी का कयाम 1857 के दौर के बाद भारतीय समाज की तालीम के शोबे में पहली महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया मानी जाती है.


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MAO सने बना AMU
पहले इस का नाम मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल (एमएओ) था, जिसे बाद में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के नाम से दुनिया भर में जाना जाने लगा. 1877 में बने मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज को विघटित कर 1920 में ब्रिटिश सरकार की सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के एक्ट के जरिए AMU एक्ट लाया गया. पार्लियामेंट ने 1951 में AMU तरमीमी एक्ट पास किया, जिसके बाद इस इदारे के दरवाजे गैर-मुसलमानों के लिए खोले गए.


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पहला ग्रेजुएट हिंदू छात्र
साल 1920 में एएमयू को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया. विश्वविद्यालय से कई प्रमुख मुस्लिम नेताओं, उर्दू लेखकों और उपमहाद्वीप के विद्वानों ने विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है. एएमयू से ग्रेजुएट करने वाले पहले शख्स भी हिंदू थे, जिनका नाम इश्वरी प्रसाद था.


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