`माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं`, अल्लामा इकाबाल के शेर
Allama Iqbal Poetry: अल्लामा इकबाल का नाम मोहम्मद इकबाल है. उन्हें अल्लामा ऐजाज से नवाजा गया. अल्लामा इकबार 9 नवंबर 1877 को पंजाब के सियालकोट में पैदा हुए. उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन लाहौर के सरकारी कॉलेज से किया.
Allama Iqbal Poetry: अल्लामा इकबाल उर्दू के सबसे बड़े और मशहूर शायरों में से एक हैं. उन्होंने बीसवीं सदी में उर्दू के बेहतरीन शेर लिखे. इकबाल ने पाकिस्तान में अपनी पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्होंने पढ़ाई के सिलसिले में यूरोप का रुख किया. इसके बाद वह जर्मनी गए. यहां इन्हें म्यूनिख युनिवर्सिटी से फिलॉसफी में पीएचडी की डिग्री दी गई. अल्लामा इकबाल बहुत लिखा लेकिन वह अपनी शायरी के लिए जाने जाते हैं.
इल्म में भी सुरूर है लेकिन
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी
ढूँडता फिरता हूँ मैं 'इक़बाल' अपने आप को
आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो
तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में
हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
\ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है