`हया नहीं है जमाने की आंख में बाक़ी, ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग`
Allama Iqbal Poetry: इक़बाल अंजुमन हिमायत इस्लाम के जलसों में शिरकत करते थे. 1900 ई. में अंजुमन के एक जलसे में इन्होंने अपनी मशहूर नज़्म `नाला-ए-यतीम` पढ़ी. इसे खूब सराहा गया. पेश हैं इकबाल के बेहतरीन शेर.
Allama Iqbal Poetry: मुहम्मद इकबाल 09 नवंबर 1877 ई. को स्यालकोट में पैदा हुए. इक़बाल ने 1899 ई. में दर्शनशास्त्र में एम.ए किया. इसके बाद उसी कॉलेज में पढ़ाने लगे. 1905 ई. में वो आला तालीम हासिल करने के लिए इंग्लिस्तान चले गए. उन्होंने कैंब्रिज से पढ़ाई की. इक़बाल की पहली शादी छात्र जीवन में हुई. इसके बाद उन्होंने और दो शादियां कीं. इक़बाल ने कम उम्र में ही शायरी शुरू कर दी थी.
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा
बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी
मुझे बता तो सही और काफ़िरी क्या है
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से
कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों में
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है
वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है
तिरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में
तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख