अमूल ब्रांड के तहत अपने दुग्ध उत्पाद बेचने वाले गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (GCMMF) ने कहा है कि दूध के दामों में और बढ़ोतरी की संभावना नहीं है. GCMMF के प्रबंध निदेशक जयेन एस मेहता ने बुधवार को कहा कि मानसूनी बरसात अच्छी रहने के बाद दूध खरीद का काम काफी बेहतर रहने का अनुमान है. ऐसे में दूध के दाम और बढ़ने की उम्मीद नहीं है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

मेहता ने कहा, “गुजरात में वक्त पर मानसून की वजह से इस साल हालत काफी अच्छी है, कम से कम इसका मतलब है कि उत्पादकों पर चारे की लागत के लिए ज्याद दबाव नहीं है, और हम दूध खरीद के अच्छी खरीद के दौर में इंटर कर रहे हैं, इसलिए हम किसी भी बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं कर रहे हैं.’’ उन्होंने यह बात इस सवाल के जवाब में कही कि क्या आने वाले महीनों में कीमतों में किसी तरह की बढ़ोतरी होगी. निवेश योजनाओं पर उन्होंने कहा कि वे हर साल करीब 3,000 करोड़ रुपये का निवेश कर रहे हैं और यह अगले कई सालों तक ऐसा होता रहेगा. 


मेहता ने कहा, ‘‘दूध की खरीद में बढ़ोतरी के साथ-साथ प्रोसेसिं सहूलत में भी विस्तार की जरूरत है, हम राजकोट में एक नए डेयरी संयंत्र का ऐलान करेंगे. जिसकी क्षमता 20 लाख लीटर प्रतिदिन से अधिक की होगी और वहां एक नई पैकेजिंग और प्रोसेसिं इकाई भी होगी.’’ उन्होंने कहा कि राजकोट प्रोजेक्ट में कम से कम 2,000 करोड़ रुपये का निवेश होगा, जबकि कई दूसरी परियोजनाएं भी चल रही हैं. यूरोपीय संघ (ईयू) जैसे कुछ व्यापारिक साझेदारों द्वारा मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) के तहत इस इलाके में आयात शुल्क रियायतों की मांग के बारे में पूछे जाने पर, मेहता ने कहा कि दूध देश में 10 करोड़ से ज्यादा परिवारों के लिए आजीविका का स्रोत है और ज्यादातर उत्पादक छोटे और सीमांत किसान हैं.


उन्होंने कहा, ‘‘अगर विकसित देश अपना अधिशेष उत्पादन हमारे देश में डंप करना चाहते हैं, तो यह हमारे किसानों के लिए एक परेशानी बन सकता है और अमूल ने सरकार के सामने कई बार यही बात रखी है.’’ उन्होंने कहा कि सरकार भी इसे मुख्य मुद्दा समझती है और इसीलिए सभी एफटीए में डेयरी क्षेत्र को बाहर रखा गया है. उन्होंने कहा, ‘‘भारत यूरोपीय ‘चीज’ जैसे डेयरी सामान को मामूली 30 प्रतिशत शुल्क पर आयात करने की इजाजत देता है. वे देश ऐसी ही पहल करते नहीं दिखते. यूरोपीय संघ को डेयरी उत्पादों का निर्यात करना मुश्किल है. अमेरिका में 60-100 प्रतिशत शुल्क है. भारत एक खुला बाजार है लेकिन यहां हम नहीं चाहते कि उनका अधिशेष सस्ती दर पर हमारे देश में आए और हमारे छोटे किसानों की आजीविका को नुकसान पहुंचाए.