"अगर इरादे बुलंद हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है" इस कथन को सच कर के दिखाया है असम के गुवाहाटी जिले के एक पिछड़े हुए मुस्लिम इलाके से आने वाले अमीनुल हक ने. कहते हैं न कि परेशानियां आपके रास्ते की रुकावट बनने नहीं, बल्की आपको मजबूत बनाने के लिए आती हैं. अमीनुल हक ने अपनी काबिलियत और कड़ी मेहनत से ये सबित कर दिया कि गरीबी और सुविधाओं की कमी आपको आपके लक्ष्य तक पहुंचने से नहीं रोक सकती है. पिछड़े हुए मुस्लिम इलाके से निकल कर आज अमीनुल हक तेलंगाना की एक सरकारी संस्था में डेटा साइंटिस्ट हैं. आज हम अमीनुल हक की जिंदगी के बारें में आपको बताएंगे. 
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पढ़ाई के साथ-साथ काम कर निकाला अपना खर्च 
अमीनुल हक एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं, पिता एक छोटी नौकरी करते थे. जिसमें उनकी पढ़ाई का खर्च निकल पाना मुमकिन नहीं था, लेकिन अमीनुल ने हार नहीं मानी. उन्होंने अपना खर्चा खुद से निकालने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया और कुछ कंपनियों में पार्ट-टाइम जॉब भी की. उन्होने कंप्यूटर साइंस में पोस्ट ग्रैजुएट की डिग्री हासिल की और पूरे असम के टॉपर बने. इसके अलावा ऑनलाइन के जरिए उन्होंने जपान के एक इंस्टीट्यूशन से भी पढ़ाई की है. अमीनुल को कंप्यूटर साइंस में इतनी दिलचस्पी थी कि उन्होंने अपनी कॉलिज टाइम में ही कंप्यूटर साइंस पर कई किताबें लिख दी थी.
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असम सरकार से मिला प्रोत्साहन और तेलंगाना सरकार में बने साइंटिस्ट  
अमीनुल हक ने पढ़ाई के समय में ही अपना खर्चा निकालने के लिए मोबाइल रिपेयरिंग का काम भी सीख लिया था. उन्होनें एक सॉफ्टवेयर भी बनाया जिसको लेकर असम सरकार ने उन्हें प्रोत्साहित भी किया. इसके बाद अमीनुल हक ने इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ इनफर्मेशन टेक्नोलॉजी हैदराबाद में साइंटिस्ट की पढ़ाई की और एग्जाम में टॉप किया. उनकी मेहनत को देखते हुए तेलंगाना सरकार ने उन्हें गोल्ड मेडल और डेटा साइंटिस्ट के ओहदे से नवाजा.


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दीन और दुनिया को एक साथ लेकर चले
अमीनुल हक पढ़ाई में मेहनती होने के साथ-साथ एक धार्मिक इंसान भी हैं. वह इस्लाम की बातों पर अमल करने के साथ-साथ पांच वक्त के नमाज़ी भी हैं. अमीनुल हक ने भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में अपना झंडा गाड़ दिया है.


(रिपोर्ट - शरीफ उद्दीन अहमद)


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