जब एक मुस्लिम बेटे ने अपनी मां को दी मुखाग्नि और इसका गवाह बना मस्जिद का इमाम !
यह मामला असम के लखीमपुर जिले के लालूक गांव के रहने वाले रशीद अली का है. 22 सालों से उसके साथ रहने वाली एक हिन्दू महिला, जिसे वह अपनी मुंह बोली माँ मानता था, शुक्रवार को उसकी मौत हो गयी थी. रशीद ने गाँव के हिन्दू दोस्तों की मदद से अपनी माँ का न सिर्फ अंतिम संस्कार किया बल्कि अपनी हाथों उसे मुखाग्नि भी दी और मस्जिद का इमाम सहित पूरा गाँव इसका गवाह बना.
गुवाहाटी: जिस वक़्त असम सहित पूरे हिंदुस्तान में मुसलमान शब्द नफरत का पर्याय बन गया हो, ऐसे वक़्त में असम के लखीमपुर के रहने वाले रशीद अली ने धर्म और साम्प्रदाय से ऊपर उठकर इंसानियत की जो नजीर पेश की है, वो सारे हिन्दुस्तान और खासकर उन लोगों के लिए एक मिसाल है, जिन्हें मुल्क के हर एक बुराई की जड़ में मुसलमान नज़र आता है. रशीद अली का मामला इसलिए भी दिलचस्प और काबिल-ए- गौर है, कि आपने मुंह बोला भाई या बहन तो सुना होगा, लेकिन रशीद अली ने एक हिन्दू महिला को अपनी मुंह बोली माँ बना लिया था, जिसके जीते जी उसने बेटे का फ़र्ज़ तो निभाया ही था, मरने के बाद भी बेटे का फ़र्ज़ निभा दिया.. रशीद अली के इस महान काम की चर्चा आज पूरे इलाके में हो रही है.
दरअसल, असम के लखीमपुर जिले के लालूक गांव के रहने वाले रशीद अली को आज से 22 साल पहले रास्ते में एक अज्ञात हिंदू महिला मिली थी, जो सड़कों पर अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रही थी. रशीद अली ने उस महिला को रास्ते से उठाकर अपने घर ले आया. उस महिला को उसने नाम दिया मुंह बोली 'मां'. पिछले 22 सालों से रशीद उस मुंह बोली महिला को अपनी माँ की तरह अपने घर में रख रहा और उसकी पूरी सेवा करता था. उसके खाने- पीने से लेकर उसके दवा का पूरा ख्याल रखता था. हालांकि, रशीद अली के इस काम की कभी किसी ने चर्चा नहीं की, लेकिन जब उस महिला की मौत हो गयी तो रशीद अली का ये पुनीत काम दुनिया के सामने आया.
गम में डूब गया रशीद अली का परिवार
शुक्रवार को रशीद अली के इस मुंह बोली माँ की मौत हो गयी, जिसकी वजह से उसका परिवार गम में डूब गया.. रशीद अली चाहता तो अपनी इस माँ का अपनी आस्था के मुताबिक अंतिम संस्कार करते हुए उसे जनाज़े की नमाज़ के बाद किसी कब्रिस्तान में दफना देता, और किसी को कोई खबर भी नहीं होती. लेकिन रशीद अली ने उस महिला की मौत के बाद दूसरे गाँव जाकर हिन्दू समुदाय के लोगों को इसकी सूचना दी और हिन्दू रीति रिवाजों के मुताबिक उसका अंतिम संस्कार करने में मदद की मांग की. रशीद अली के इस प्रस्ताव से पहले तो हिन्दू समुदाय के लोग तैयार नहीं हुए लेकिन उन्हें समझाने के बाद उन लोगों ने रशीद अली की मदद करने को तैयार हुए.
हिन्दू रीति- रिवाजों के मुताबिक अंतिम संस्कार
इस तरह रशीद अली की मां का हिन्दू रीति- रिवाजों के मुताबिक अंतिम संस्कार किया गया और उसने अपनी हाथों से अपनी उस मुंह बोली मां की चिता को मुखाग्नि दी. इस दौरान उसके घर के लोग, हिन्दू समुदाय के लोग और गाँव के मस्जिद के इमाम भी श्मशान में एक हिन्दू महिला को उसके मुस्लिम बेटे के जरिये दी जा रही इस मुखाग्नि के गवाह बने. श्मशान का ये दृश्य देश के उन लाखों-करोड़ों नफरती समूह के मुंह पर लगे तमाचे की तरह है, जो दिन रात इस मुल्क में नफरत और हिंसा का कारोबार करते हैं.
क्या कहते हैं राशिद अली ?
राशिद अली ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि मैं उन्हें अपनी मां की तरह मानता था. इसलिए उनकी मौत पर मेरा परिवार सदमे में हैं. आज मेरे घर में चूल्हा भी नहीं जला है. मैं मां के लिए हिन्दू रीती रिवाजों के मुताबिक पिंडदान भी करूंगा. गरीबों को खाना भी खिलाऊंगा. राशिद अली ने कहा कि हिंदू और मुसलमान के बीच दीवार नेताओं ने अपने फायदे के लिए कड़ी की है. इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता और एडवोकेट इलियास अहमद ने राशिद अली और गाँव के स्थानीय इमाम की तारीफ की है.
गुवाहाटी से शरीफ उद्दीन अहमद की रिपोर्ट