Bahadur Shah Zafar Poetry: बहादुर शाह जफर उर्दू के जाने माने शायर थे. वह (1775-1862) भारत में मुगल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह थे. उनका नाम अबू जफर सिराज उद्दीन मुहम्मद था. जफर की पैदाइश 14 अक्तूबर 1775 में हुई. उन्होंने 1857 के पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया. बहादुर शाह जफर ने उर्दू और फ़ारसी के साथ साथ बृज भाषा में लिखा. जफर एक रहमदिल इंसान थे. अंग्रेजों से जंग में हार के बाद अंग्रेजों ने उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) भेज दिया जहां उनकी मौत हो गई.


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इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें 
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में 


तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें 
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया 


क्या पूछता है हम से तू ऐ शोख़ सितमगर 
जो तू ने किए हम पे सितम कह नहीं सकते 


क्या ताब क्या मजाल हमारी कि बोसा लें 
लब को तुम्हारे लब से मिला कर कहे बग़ैर 


इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल 
दुनिया है चल-चलाव का रस्ता सँभल के चल 


बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी 
जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी 


न दूँगा दिल उसे मैं ये हमेशा कहता था 
वो आज ले ही गया और 'ज़फ़र' से कुछ न हुआ 


चाहिए उस का तसव्वुर ही से नक़्शा खींचना 
देख कर तस्वीर को तस्वीर फिर खींची तो क्या 


मर्ग ही सेहत है उस की मर्ग ही उस का इलाज 
इश्क़ का बीमार क्या जाने दवा क्या चीज़ है 


औरों के बल पे बल न कर इतना न चल निकल 
बल है तो बल के बल पे तू कुछ अपने बल के चल 


 हम ही उन को बाम पे लाए और हमीं महरूम रहे 
पर्दा हमारे नाम से उट्ठा आँख लड़ाई लोगों ने


हम अपना इश्क़ चमकाएँ तुम अपना हुस्न चमकाओ 
कि हैराँ देख कर आलम हमें भी हो तुम्हें भी हो