अधिकारियों की राय पर रिहा हुए बिलकीस बानों मामले के दोषी, पैरोल के दौरान किया महिला का शील भंग
Bilkis Bano Case: बिलकीस बानों मामले के आरोपियों को रिहा किए जाने पर हंगामा जारी है. इस पर सियासत भी शुरू हो चुकी है. ऐसे में गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि किन अधिकारियों की राय पर विचार कर यह कदम उठाया गया.
Bilkis Bano Case: बिलकीस बानो के दोषियों की रिहाई पर हंगामा जारी है. इस दौरान गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि बिलकिस बानो मामले के दोषियों में से एक को पैरोल पर बाहर रहने के दौरान 2020 में एक महिला का शील भंग करने के आरोप में चार्जशीट किया गया था.
बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 477 पन्नों का हलफनामा पेश किया है. इसने कहा कि आजीवन कारावास की सजा पर रिहा होने से पहले ही दोषी लगभग 1,000 दिनों के लिए जेल से बाहर थे.
एक दोषी पर शील भंग का आरोप
दोषियों में से एक, मितेश चमनलाल भट्ट पर आईपीसी की धारा 354 (महिला की शील भंग), 504 (शांति भंग करने के इरादे से अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया था, जिसमें अधिकतम सजा थी 7 साल की कैद या जुर्माना या दोनों.
राज्य सरकार ने आगे कहा कि सभी दोषियों को उनकी कारावास की अवधि के दौरान अलग-अलग बिंदुओं पर फरलो, पैरोल और यहां तक कि अस्थायी जमानत दी गई थी. दाहोद के जिलाधिकारी ने 25 मई, 2022 को अपने पत्र में भट्ट के बारे में जानकारी दी कि उन्होंने दोषियों के निलंबन और सजा में छूट के संबंध में सीआरपीसी की धारा 432-433 ए के तहत उनकी समयपूर्व रिहाई के बारे में अपनी राय दी.
पत्र में कहा गया है कि भट्ट के खिलाफ दाहोद जिले के रंधिकपुर पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया है और आरोपपत्र दायर किया गया है और मामला अदालत के बोर्ड में लंबित है. पत्र में कहा गया है कि यह घटना 19 जून, 2020 को हुई थी और तब से भट्ट ने 25 मई, 2022 तक कुल 954 दिनों के पैरोल और फरलो में से 281 छुट्टियों का आनंद लिया.
कलेक्टर ने पुलिस उपनिरीक्षक रणधीकपुर एवं लिमखेड़ा के पुलिस उपाधीक्षक की राय पर विचार कर भट्ट की समयपूर्व रिहाई पर कोई आपत्ति नहीं की.
इसलिए दोषियों को किया गया रिहा
एक हलफनामे में गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को रिहा करने का फैसला किया, क्योंकि उन्होंने जेल में 14 साल से अधिक की सजा पूरी कर ली थी और उनका व्यवहार अच्छा पाया गया था. साथ ही, केंद्र ने भी अपनी सहमति/अनुमोदन से अवगत कराया था.
राज्य सरकार ने यह भी कहा कि पुलिस अधीक्षक, सीबीआई, विशेष अपराध शाखा, मुंबई और विशेष दीवानी न्यायाधीश (सीबीआई), सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट, ग्रेटर बॉम्बे ने पिछले साल मार्च में दोषियों की समय से पहले रिहाई का विरोध किया था.
गोधरा उप-जेल के अधीक्षक को लिखे पत्र में सीबीआई अधिकारी ने कहा कि दोषियों द्वारा किया गया अपराध जघन्य, गंभीर और गंभीर है, इसलिए उन्हें समय से पहले रिहा नहीं किया जा सकता.
राज्य के गृह विभाग के अवर सचिव ने एक हलफनामे में कहा, "भारत सरकार ने 11 जुलाई, 2022 के पत्र के माध्यम से 11 कैदियों की समयपूर्व रिहाई के लिए सीआरपीसी की धारा 435 के तहत केंद्र सरकार की सहमति/अनुमोदन से अवगत कराया."
हलफनामे में कहा गया है कि राज्य सरकार ने सात अधिकारियों - जेल महानिरीक्षक, गुजरात, जेल अधीक्षक, जेल सलाहकार समिति, जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस अधीक्षक, सीबीआई, विशेष अपराध शाखा, मुंबई, और सत्र न्यायालय, मुंबई की राय पर विचार किया.
क्या है पूरा मामला?
गुजरात सरकार की प्रतिक्रिया माकपा की पूर्व सांसद सुभासिनी अली, पत्रकार रेवती लौल और प्रो. रूप रेखा वर्मा द्वारा दायर एक याचिका पर आई, जिसमें 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और कई हत्याओं के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों की रिहाई को चुनौती दी गई थी. दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाएं तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और अन्य ने भी दायर की हैं.
शीर्ष अदालत ने 18 अक्टूबर को याचिकाकताओं को राज्य सरकार के जवाबी हलफनामे पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने के लिए समय दिया और मामले की अगली सुनवाई 29 नवंबर को होनी तय की.
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