कुलदीप नागेश्वर पवार/नई दिल्ली: आज का दिन और तारीख अपने आप में बहुत ही अहम है. ये किसी संयोग से कम नहीं है कि जहां एक ओर देश भर में माता - बहनें अपने सुहाग की सलामती और लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत कर रही हैं तो ठीक दूसरी ओर मां भारती की बेटी कैप्टन लक्ष्मी सहगल का आज जन्मदिवस (Lakshmi Sehgal Birthday) भी है, जिसने मादरे वतन के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया.


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दूसरी जंगे अज़ीम के दौरान आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हुई
मद्रास (चेन्नई) में जन्मी (जन्म: 24 अक्टूबर 1914 - मृत्यु: 23 जुलाई 2012) पेशे से डॉक्टर लक्ष्मी सहगल (Lakshmi Sehgal) ने मद्रास के मेडिकल कॉलेज से तालीम हासिल की और उसके बाद वे सिंगापुर में जा बसी. दूसरी जंगे अज़ीम के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो डॉ लक्ष्मी सहगल नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) की आज़ाद हिंद फ़ौज (Azad Hind Fauj) में शामिल हो गईं. इस दौरान उन्होंने ज़ख्मी मुजाहिदीने आज़ादी के लिए काफी काम किया.


भारत की तकसीम के सख्त मुखालिफ थीं कैप्टन लक्ष्मी
सन 1943 में आरज़ी आज़ाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनने वाली कैप्टन लक्ष्मी (Lakshmi Sehgal) बचपन से ही राष्ट्रवादी विचारों और आंदोलनों से प्रभावित रही थीं. उनके खानदानी पसमंज़र में भी राष्ट्रवादिता की साफ झलक देखने को मिलती थी, जिसके चलते एक वक्त में गांधी के अहिंसा मार्ग से छेड़े गए विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के आंदोलन में भी उन्होंने हिस्सा लिया. लेकिन कैप्टन सहगल भारत की तकसीम  में अडिगता से खड़ी रहीं. वह सदैव वंचितों के लिए कार्यरत रही, और अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई के सख्त खिलाफ रही.


आज़ाद हिन्द फौज़ की "रानी लक्ष्मी रेजिमेंट" की कमांडर रहीं डॉ. लक्ष्मी
2 जुलाई सन 1943 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) की सिंगापुर यात्रा ने डॉक्टर लक्ष्मी सहगल (Lakshmi Sehgal) की ज़िंदगी को एक नई दिशा दी. दुनिया भर में फैले भारतीयों के भीतर जंगे आज़ादी का प्राण फूंकने वाले नेताजी जब आजादी की मशाल लिए सिंगापुर पहुंचे तो डॉ. लक्ष्मी (Lakshmi Sehgal) भी उनके नज़रियात से मुतासिर हुए बिना नहीं रह सकीं. नेताजी के साथ हुए उसके करीब 1 घण्टे के राष्ट्र वंदना रूपी संवाद के आखिर में उन्होंने खुद को आजाद हिंद फौज में शामिल होने की इच्छा के साथ मादरे वतन की आजादी के लिए किए जा रहे महा बलिदान की यज्ञवेदी पर खुद को समर्पित कर दिया. डॉ.लक्ष्मी के भीतर आजादी के ख्वाब को लेकर भरी अति महत्वाकांक्षा और जज्बे को देखकर नेताजी ने उनकी कियादत में रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट बनाने का ऐलान कर दिया.


आज़ाद हिंद फौज में 500 महिलाओं की फ़ौज तैयार की
आजादी के लिए कई मोर्चों पर कैप्टन लक्ष्मी (Lakshmi Sehgal) ने अपनी बटालियन के साथ अंग्रेजों का सामना किया और उन्हें मुंह तोड़ जवाब भी दिया. उन्होंने नेताजी के साथ समरांगण में कंधे से कंधा मिलाकर आज़ाद हिंद फौज में 500 महिलाओं की फ़ौज तैयार की जो उस वक्त में काफी चुनौती भरे और निहायत ही काम में से एक था. ये विंग एशिया में पहली अपनी तरह की विंग थी जिसमें महिलाओं ने बंदूक की गोलियों से अंग्रेजों को ललकार कर यह बताया कि उनका निशाना भी पुरुषों से कम नहीं है और उनकी बंदूक की गोली से भी पलक झपकते ही प्राण पखेरू उड़ सकते है.


कर्नलका ओहदा भी मिला
आज़ाद हिंद फ़ौज की रानी झाँसी रेजिमेंट में लक्ष्मी सहगल बहुत एक्टिव रहीं. बाद में उन्हें कर्नल का ओहदा दिया गया जो एशिया में पहली बार किसी महिला को मिला था बावजूद इसके लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा.


1998 में पद्मभूषण से सम्मानित हुईं
भारत सरकार से सन 1998 में पद्मभूषण से सम्मानित कैप्टन लक्ष्मी का 98 साल की उम्र में जिंदगी से अपनी आखिरी जंग हार गई और उत्तरप्रदेश के कानपुर में हैलेट अस्पताल में उनका इंतिका हो गया.


माँ भारती की इस बेटी को इन दो पंक्तियों के साथ कोटि-कोटि नमन.
आज़ादी प्राप्ति की कीमत भी खून ही थीं,
और आज़ादी को बनाए रखने की कीमत भी सिर्फ और सिर्फ खून ही है.
तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।।"


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