भाजपा ने इस तरह आदिवासी, ओबीसी और ब्राह्मण को साधा, 2024 के लिए की बड़ी तैयारी
भाजपा ने हाल ही में तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान के चुनाव में जीत दर्ज की. यहां भाजपा ने आदिवासी, यादव और ब्राह्मण को मुख्यमंत्री चुना है. ऐसा करके भाजपा ने 2024 के लिए जातिगत समीकरणों को साधने का काम किया है.
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में लम्बी चर्चा के बाद जिन नेताओं को मुख्यमंत्री के तौर पर चुना गया है, उससे बीजेपी आलाकमान ने वाजिब तौर पर देश के मतदाताओं और विपक्षी दलों के साथ-साथ बीजेपी तंजीम के नेताओं को भी एक बड़ा सिंगनल देकर यह साफ कर दिया है कि बीजेपी 2024 की लड़ाई की तैयारी शुरू कर चुकी है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान, तीनों राज्यों में मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ दो-दो उपमुख्यमंत्रियों का इंतेखाब कर बीजेपी ने राज्य की स्थानीय राजनीति को तो साधा ही है, लेकिन इसके साथ ही जातपात की मुसावाद को 2024 की लड़ाई को भी जीतने की तैयारी शुरू कर दी है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान इन तीनों राज्यों में लोक सभा की कुल 65 सीटें हैं. मध्य प्रदेश में ओबीसी, छत्तीसगढ़ में आदिवासी और राजस्थान में ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने एक तरह से विपक्षी दलों की वाजिब तौर की काट भी तैयार करने की कोशिश की है. इन तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री के रूप में नया चेहरा देकर बीजेपी ने 2024 के चुनाव के लिए नई लकीर खींची है.और खास बात येहै. कि इन नामों के जरिये बीजेपी ने जातीय समीकरणों का पूरा ध्यान रखा है. पार्टी आलाकमान ने उम्मीदवारों के चयन में 2024 के चुनाव में पीएम मोदी के चेहरे का भरोसा मजबूत रखे जाने को तवज्जो दी है.
बीजेपी की यादव के जरिये उत्तर प्रदेंश पर नजर
अगर वही हम राहुल गांधी,अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव जोर-शोर से जातीय जनगणना और ओबीसी आरक्षण की बार बार बात कर रहे है .जिससे ऐसा मना जा रह है कि यह लोक सभा चुनाव के लिए विपक्षी गठबंधन का बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है.लेकिन अगर वही शिवराज सिंह चौहान की बात रहे तो शिवराज सिंह चौहान ओबीसी समाज से ही आते हैं. लेकिन बीजेपी ने मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य में 'यादव' सरनेम वाले ओबीसी नेता मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना कर उत्तर प्रदेश और बिहार के यादव मतदाताओं को बड़ा राजनीतिक दाव खेल दिया है . पार्टी ने ब्राह्मण राजेंद्र शुक्ला और दलित समुदाय से जगदीश देवड़ा को डिप्टी सीएम देकर संतुलन बरकरार रखने की कोशिश की है. बीजेपी ने उज्जैन दक्षिण से विधायक मोहन यादव को कमान देकर बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में लालू यादव को सीधे-सीधे चुनौती दी है. यूपी में यादवों की संख्या करीब 8 फीसदी मानी जाती है. ऐसे में ओबीसी की राजनीति में यादवों का दबदबा है. इसके साथ ही मध्यप्रदेश में पांव जमाने की कोशिश में जुटे अखिलेश यादव को झटका भी दिया है.
छत्तीसगढ़ में आदिवासी सीएम से बीजेपी की इन राज्यों में बीजेपी की नजर
छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेता विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने छत्तीसगढ़ की चुनावी गणित तौर की है जिसके जरिए. देश भर के सभी राज्यों में आदिवासी लोगों को भी साधने का प्रयास किया है. बीजेपी को इस बार छत्तीसगढ़ में सत्ता में लाने में आदिवासी समुदाय ने अहम भूमिका अदा की है.वही आप आदिवासी वोटरों के महत्व का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं. कि लोकसभा की 543 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. 47 सीटें असम, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, ओडिशा, राजस्थान, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल सहित 17 राज्यों एवं संघ शासित प्रदेशों में हैं. नॉर्थ ईस्ट के कई राज्यों में इनकी आबादी 75 प्रतिशत से भी ज्यादा है. यह माना जाता है कि आदिवासी वोटर देश की 75 से ज्यादा लोक सभा सीटों पर जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका तो निभाते ही हैं. लेकिन इसके साथ ही 20 के लगभग सीटें ऐसी भी है. जहां इनकी तादाद अच्छी-खासी है. इसलिए बीजेपी ने आदिवासी चेहरे विष्णु देव साय को मुख्यमंत्री बनाया है. राज्य का पहले सीएम अजित जोगी भी आदिवासी समुदाय से आते थे. ऐसे में बीजेपी ने राज्य में दूसरा आदिवासी सीएम देकर बड़े हिस्से को संदेश दिया है.
ब्राह्मण वोटर से पूरी हुई बिजेपी की तिकड़ी
लेकिन वही राजस्थान में ब्राह्मण समाज से आने वाले नेता भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री चुन कर भाजपा ने देश भर के ब्राह्मण मतदाताओं को एक बड़ा संदेश दिया है. दो राज्यों में आदिवासी और यादव समुदाय से मुख्यमंत्री घोषित करने के बाद बीजेपी ने राजस्थान से ब्राह्मण चेहरे को मुख्यमंत्री के रूप में चुना है. इस बात के पहले सी कयास लग रहे थे कि दो राज्यों के बाद राज्सथान में बीजेपी की तरफ से सामान्य वर्ग का चेहरा आगे किया जा सकता है लेकिन ऐसा नही हुआ. कई विश्लेषक इन तीनों राज्यों में नए मुख्यमंत्रियों के चयन को भाजपा में अटल-आडवाणी के युग के समापन के तौर पर भी देख रहे हैं. हालांकि बीजेपी इस विश्लेषण को खारिज करते हुए यह कह रही है कि इसे युग के समापन के तौर देखना ठीक नहीं है. इन दोनों नेताओं द्वारा तैयार की गई नींव पर ही बीजेपी आगे बढ़ रही है. और एक तरह से कहे तो बीजेपी अपनी लोकसभा चुनाव में पुरी तरह से जुट गई है.