BR Ambedkar's death anniversary: भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर की याद में 6 दिसंबर को महापरिनिर्वाण दिवस मनाता है. 14 अप्रैल 1891 को BR अंबेडकर का जन्म मध्यप्रदेश के महू नगर में हुआ था. बाबासाहेब के नाम से मशहूर डॉ. भीमराव अंबेडकर ने छुआछूत जैसी सामाजिक बुराई को खत्म करने, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और देश भर में दलितों के आर्थिक और सामाजिक उत्थान करने के लिए बड़ी लड़ाई लड़ी. आज बाबा अंबेडकर की पुण्यतिथि के मौके पर आइये जानते है उनके कुछ अहम विचार और उनके जीवन से जुड़ी बातें जिनसे आप कुछ सीख सकते हैं. 


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डॉ. भीमराव अंबेडकर के 10 विचार 


हम आदि से अंत तक भारतीय हैं


ज्ञान हर व्‍‍यक्ति के जीवन का आधार है.


जो झुक सकता है वो झुका भी सकता है.


जीवन लंबा होने के बजाय महान होना चाहिए.


न्याय हमेशा समानता के विचार को पैदा करता है.


धर्म मनुष्य के लिए बना है न कि मनुष्य धर्म के लिए.


एक इतिहासकार सटीक, ईमानदार और निष्‍पक्ष होना चाहिए.


वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जातिविहीन करना होगा.


जो कौम अपना इतिहास नही जानती है, वह कौम कभी अपना इतिहास नहीं बना सकती है. 


15 साल की उम्र में ही हो गई थी शादी
भीमराव अंबेडकर की शादी बहुत ही कम उम्र में करा दी गई थी. अप्रैल 1906 में जब भीमराव लगभग 15 साल के थे, उस वक्त उनकी शादी नौ साल की रमाबाई से कराई गई थी. बताया जाता है उस वक्त अंबेडकर 5 वी कक्षा में पढ़ रहे थे. 


सविंधान बनाने में दिया अहम योगदान
भीमराव अंबेडकर आज़ादी के बाद भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने वाली कमेटी के सात सदस्यों में से एक थे. आंबेडकर संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष थे, जिसकी जिम्मेदारी संविधान का लिखित प्रारूप तैयार करना था. 


संविधान को अंतिम रूप देने में डॉ. आंबेडकर की भूमिका के बारे में बोलते हुए भारतीय संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के एक सदस्य टी. टी. कृष्णमाचारी ने नवम्बर 1948 में संविधान सभा के सामने कहा था, "सम्भवत: सदन इस बात से अवगत है कि आपने ( ड्राफ्टिंग कमेटी में) में जिन सात सदस्यों को नॉमिनेट किया है, उनमें एक ने सदन से इस्तीफा दे दिया है और उनकी जगह दूसरे सदस्य आ चुके हैं. एक सदस्य की इसी बीच मौत हो चुकी है और उनकी जगह कोई नए सदस्य नहीं आए हैं. एक सदस्य अमेरिका में थे और उनकी जगह भरी नहीं गई. एक दूसरे शख्स  सरकारी मामलों में उलझे हुए थे और वह अपनी जिम्मेदारी को नहीं निभा रहे थे. एक-दो व्यक्ति दिल्ली से बहुत दूर थे और सम्भवत: स्वास्थ्य की वजहों से कमेटी की कार्यवाहियों में हिस्सा नहीं ले पाए. सो कुल मिलाकर यही हुआ है कि इस संविधान को लिखने का भार डॉ. आंबेडकर के ऊपर ही आ पड़ा है. मुझे इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि हम सब को उनका आभारी होना चाहिए कि उन्होंने इस जिम्मेदारी को इतने सराहनीय ढंग से अंजाम दिया है.