पटनाः राष्ट्रपति चुनाव के ऐलान के बाद से ही बिहार में इस पद के उम्मीदवारी को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया था. हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद को राष्ट्रपति ओहदे के उम्मीदवारी में दिलचस्पी नहीं रहने की बात कर खुद इन अटकलों पर विराम लगा दिया था, लेकिन जदयू को लेकर एनडीए पूरी तरह आश्वस्त नहीं दिख रही है.
गौरतलब है कि जदयू राष्ट्रपति चुनाव में दल से ज्यादा उम्मीदवार को अहमियत देती है. कम से कम पिछले दो चुनावों से तो यही देखा जा रहा है. यही वजह है कि इस मामले में भाजपा भी फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रही है. पिछले दो बार के राष्ट्रपति चुनाव में जदयू ने गठबंधन से इतर जाकर व्यक्ति को महत्व दिया था.

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विपक्षी के उम्मीदवार को वोट कर चुका है जदयू 
वर्ष 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में प्रणब मुखर्जी यूपीए के प्रत्याशी थे, जबकि जदयू तब एनडीए का हिस्सा था. इसके बावजूद जदयू ने राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को वोट किया था. वर्ष 2017 में राष्ट्रपति चुनाव में भी नीतीश कुमार ने दल से ज्यादा उम्मीदवार को अहमियत दी थी. दोबारा प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति प्रत्याशी बनाने को लेकर जब बात भी बनी तो जदयू ने फिर पुराने नीति को ही अपनाया. उस वक्त जदयू बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन का हिस्सा थी, लेकिन जदयू ने एनडीए के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद को साथ दिया था. उस वक्त कोविंद बिहार के राज्यपाल थे.

हमारी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है
उस दौरान नीतीश कुमार ने कहा था कि बिहार में काम करने वाले राज्यपाल को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया जा रहा.मुख्यमंत्री से सोमवार को जब राष्ट्रपति उम्मीदवार के संबंध में पूछा गया था, तब उन्होंने कहा था कि अभी कुछ तय नहीं हुआ है. कौन उम्मीदवार होंगे, एक ही होंगे कि अनेक होंगे इसलिए अभी इस पर प्रतिक्रिया देना ठीक नहीं होगा. इस पर राय - विचार होगा तब सब साफ हो जाएंगे. हमलोग एनडीए में हैं.खुद के राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि कौन क्या बोलता है मुझे नहीं पता? हमारी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है. 


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