`दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं`, दाग देहलवी के शेर
Daagh Dehlvi Urdu Poetry: दाग़ दहेलवी का असल नाम इब्राहीम था लेकिन वो नवाब मिर्ज़ा ख़ान के नाम से जाने गए. वो 1831 ई. में दिल्ली में पैदा हुए. आज हम पेश कर रहे हैं दाग दहेलवी के उर्दू के बेहतरीन शेर.
Daagh Dehlvi Urdu Poetry: दाग दहेलवी उर्दू के मशहूर शायर हैं. दाग़ ने उर्दू ग़ज़ल को एक शगुफ़्ता और रजाई लहजा दिया. उन्होंने उर्दू शायरी को फ़ारसी संयोजनों से बाहर निकाल कर उर्दू जबान दी. शायरी की नई शैली सारे हिन्दोस्तान में इतनी लोकप्रिय हुई कि हज़ारों लोगों ने उसकी पैरवी की और उनके शागिर्द बन गए.
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नहीं
जिन को अपनी ख़बर नहीं अब तक
वो मिरे दिल का राज़ क्या जानें
ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी
दोस्त की दोस्त मान लेते हैं
तबीअ'त कोई दिन में भर जाएगी
चढ़ी है ये नद्दी उतर जाएगी
ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा
मैं जो कह दूँ आप पर मरता हूँ मैं
फिरे राह से वो यहाँ आते आते
अजल मर रही तू कहाँ आते आते
कहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरी
लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी
ये तो नहीं कि तुम सा जहाँ में हसीं नहीं
इस दिल को क्या करूँ ये बहलता कहीं नहीं
दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उल्टी शिकायतें हुईं एहसान तो गया
हज़ार बार जो माँगा करो तो क्या हासिल
दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूटी क़सम से आप का ईमान तो गया
कब निकलता है अब जिगर से तीर
ये भी क्या तेरी आश्नाई है