नई दिल्लीः दिल्ली यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विज्ञान के सिलेबस से उर्दू के महान शायर और दार्शनिक अल्लामा इकबाल को बाहर किए जाने की खबर के बीच एक और बड़ी खबर आई है. डीयू के बीए ऑनर्स पॉलिटिकल साइंस के सिलेबस से महात्मा गांधी को हटाकर उनके स्थान पर वीर सावरकर को डाल दिया गया है. शिक्षकों ने शनिवार को ये दावा किया है और इसपर आपत्ति दर्ज कराई है.


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शिक्षकों के मुताबिक, डीयू ने बीए (ऑनर्स) राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम में महात्मा गांधी के पेपर की जगह सावरकर के पेपर को एक पेपर से बदलकर उसमें हिंदुत्व विचारक वी डी सावरकर पर रख दिया है. यानी सिलेबस में उलटफेर कर दिया गया है. महात्मा गांधी पर पेपर अब सेमेस्टर सात में पढ़ाया जाएगा जबकि यह पहले पांचवे सेमेस्टर में ही पढाया जाता था. शिक्षकों के मुताबिक, इसका मतलब यह होगा कि चार साल के कार्यक्रम के बजाय तीन साल के स्नातक पाठ्यक्रम का चयन करने वाले छात्र अब महात्मा गांधी का अध्ययन नहीं कर पाएंगे. शिक्षकों का आरोप है कि यह फैसला एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया है.  


गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत चार साल के ऑनर्स कार्यक्रम को अपनाया है. छात्रों के पास तीन साल की स्नातक डिग्री या चार साल के स्नातक कार्यक्रम का विकल्प चुनने का विकल्प है. विवि कई विषयों के चार साल के प्रोग्राम का सिलेबस तैयार कर रहा है.


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एकेडमिक काउंसिल की बैठक में विरोध 
शुक्रवार को एकेडमिक काउंसिल की बैठक में इस संबंध में प्रस्ताव भी पास किया गया था. डीयू के इस कदम की शिक्षकों के एक वर्ग से तीखी आलोचना की है, और कहा है कि यह शिक्षा का भगवाकरण और गांधी और सावरकर की तुलना करने का प्रयास है. इस मामले में अब, अंतिम फैसला कार्यकारी परिषद द्वारा लिया जाएगा, जो डीयू की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है. डीयू के वाइस चांसलर योगेश सिंह ने इस मुद्दे पर टिप्पणी मांगने वाले  कॉल का जवाब नहीं दिया है. 

गांधी को पढ़ाई से हटाने की योजना बना रहे हैं  
शुक्रवार की बैठक में शामिल होने वाले एकेडमिक काउंसिल के सदस्य आलोक पांडे ने कहा, “पहले सेमेस्टर पांच में गांधी पर एक पेपर होता था, और सेमेस्टर छह में अंबेडकर पर एक पेपर होता था. अब, उन्होंने सावरकर पर एक पेपर पेश किया है. हमें इससे कोई ऐतराज नहीं है." लेकिन उन्होंने सावरकर का परिचय गांधी की कीमत पर किया है. उन्होंने सेमेस्टर पांच से हटाकर पेपेर सात में गांधी को स्थानांतरित कर दिया है.’’  पांडे ने कहा, “ऐसा लगता है कि वे गांधी पर पेपर को पढ़ाई से हटाने की योजना बना रहे हैं, क्योंकि जो छात्र तीन साल के कार्यक्रम का विकल्प चुनेंगे, वे इस पेपर का अध्ययन नहीं करेंगे." 

गांधी का दर्शन अच्छी राजनीति के साथ अच्छे व्यक्तित्व निर्माण के लिए जरूरी  
कार्यकारी परिषद के पूर्व सदस्य राजेश झा डीयू प्रशासन के इस कदम का विरोध करते हुए कहा है कि छात्रों को शुरुआती सेमेस्टर में गांधी के संपर्क में आना चाहिए ताकि उनके अंदर एक आलोचनात्मक सोच विकसित हो सके. झा ने कहा, “गांधी के विचार समावेशी हैं, और हमारे स्वतंत्रता संग्राम की सामूहिक चेतना को दर्शाते हैं. उनका दर्शन अच्छी राजनीति के साथ-साथ अच्छे व्यक्तित्व निर्माण के लिए भी जरूरी. इसलिए, छात्रों को महत्वपूर्ण सोच विकसित करने के लिए प्रारंभिक सेमेस्टर में गांधी के संपर्क में आना चाहिए." उन्होंने कहा, “गांधी को सावरकर से पहले पढ़ाना छात्रों को बाद के विचारों को व्यापक और अधिक संतुलित परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए तैयार करेगा." 


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