पैगम्बर मोहम्मद (स.) की वो 10 शिक्षाएं जिससे दुनिया में आग की तरह फैला था इस्लाम
Eid milad un nabi 2024: अरब में 5वीं सदी अन्धकार का युग था. ये जगह सबसे ख़राब भू-भाग था, जहाँ दुनिया की तमाम बुराइया मौजूद थी. ऐसे समय 570 ई. में इस्लाम के आखिरी पैगम्बर मुहमम्द साहब का जन्म हुआ. उनका व्यक्तिगत जीवन बहुत संघर्षों और कष्टों में गुज़रा था. उन्होंने एक ईश्वर का सन्देश पूरी दुनिया को दिया. 630 में उनकी मौत तक पूरे अरब और उसके बहार तक इस्लाम फ़ैल चुका था. यहं हम उन १० कारणों का जिक्र करेंगे, जिसकी वजह से इस्लाम का तेजी से प्रचार- प्रसार हुआ.
एक ईश्वर
1. पैगम्बर मोहम्मद साहब के पहले तक अरब में हर कबीले और खानदान का अपना अलग भगवान् होता था, जिसके मूर्ती बनाकर वो पूजते थे. मोहम्मद साहब ने ऐसे समय में एक ईश्वर का सिद्धांत दिया. उन्होंने कहा कि ईश्वर एक है. वो अदृश्य है. उसका कोई रूप नहीं है. वो न जन्मा है, न उसकी मौत होगी. वो सारी दुनिया का मालिक है. ये सूरज, चाँद, नदी, पहाड़, पानी, पेड़ पौधे या जिसे तुम परम शक्ति मानते हो सब उस एक ईश्वर का क्रिएशन है. अबतक तुम जिन्हें ईश्वर मानते हो वो सिर्फ अल्लाह के दूत हैं, जो अल्लाह का सन्देश लेकर तुम तक पहुंचे थे, लेकिन तुमने भूलवश उन्हें ही अपना खुदा और रब मान लिया है.
ज्ञान का प्रकाश
2. उस जमाने में अरब में अशिक्षा, अज्ञान, अन्धविश्वास और आडम्बर का बोला वाला था. ऐसे वक़्त में मोहम्मद साहब ने अरब वासियों को इल्म यानी ज्ञान हासिल करने की सीख दी. कुरआन की जो पहली आयत अवतरित हुई, उसमे इकरा यानी इल्म हासिल करने का आदेश दिया गया. लोगों को हर तरह के अन्धविश्वास और आडम्बर से दूर रहने की सलाह दी गई. यहाँ तक की उनहोंने लोगों को जादू- टोना, गंडा- ताबीज़ से भी दूर रहने की हिदायत दी.
समाजी बराबरी
3. तत्कालीन अरब समाज में भीषण असामनता थी. अमीर -गरीब और गोर-काले, कबीले, खानदान के बीच जरदस्त गैर बराबरी थी. गुलाम खरीदे और बेचे जाते थे. गुलामों पर जुल्म किया जाता था. मोहम्मद साहब ने तमाम तरह के गैर-बराबरी को ख़त्म किया और दुनिया के सभी इंसानों को एक ईश्वर का मखलूक यानी कृति बताया. पद, पैसा, रंग, नस्ल, कबीला, खानदान हर तरह के गैर बराबरी को ख़त्म किया. समाजी गैर बराबरी को ख़त्म करने के लिए उन्होंने मक्का में जब पहली मस्जिद बनी तो उसमे अजान देने के लिए एक नीग्रो काले गुलाम बिलाल को गुलामी से आज़ाद कराकर अजान के लिए आमंत्रित किया. उन्होंने कहा कि मजदूर को उसका पसीना सूखने के पहले उसकी मजदूरी दे दो. उससे उसकी क्षमता से ज्यादा काम न लो. इससे दुनिया भर के शोषित वर्ग को एक नई उम्मीद जगी.
महिला मुक्ति
4. तत्कालीन अरब समाज में महिलाओं की स्थिति जानवरों से भी बदतर थी. लोग लड़की पैदा होते ही उन्हें जिन्दा दफना देते हैं. महिलाओं की खरीद- फरोख्त होती है. व्यभिचार आम था. एक आदमी १००- 100 बीवियां रखता था. मोहम्मद साहब ने महिलाओं को पुरुषों के सामान अधिकार दिया. उन्होंने शादियों को सिमित कर 4 कर दिया, वो भी नियम और शर्तों के मुताबिक. उन्होंने विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया. इसके लिए 22 साल की उम्र में खुद 40 साल की विधवा खदीजा से विवाह कर नजीर पेश किया. उन्होंने महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा देने का नियन लागू किया. अगर किसी महिला का खराब इंसान से शादी हो जाए या उसकी शादी नहीं चल रही हो तो महिलाओं को भी तलाक का अधिकार दिया. महिला शिक्षा पर जोर दिया. धार्मिक मामलों में भी महिलाओं को पुरुषों के सामान अधिकार दिया. उनके ज़माने में महिलाएं व्यपार भी करती थी और युद्ध में भी हिस्सा लेने जाती थी. इससे बड़े पैमाने पर दुनिया भर की महिलाएं इस्लाम की प्रति आकर्षित हुईं.
समाजवादी व्यवस्था
5. मुहम्मद साहब ने इस्लाम के नियमों के मुताबिक समाजवादी व्यवस्था को लागू किया. उन्होंने कहा कि समाज का हर सक्षम आदमी अपने संचित धन का ढाई फीसदी हिस्सा गरीबों को जकात के रूप में दान करेगा. जिस व्यक्ति के 7.5 तोला सोना और 52 तोला चांदी है, वो भी एक साल में उस धातु के मूल्य का 2.5 फीसदी हिस्सा गरीबों में दान करेगा. इसके अलावा उन्होंने सदका, खैरात, फितरा जैसे दान देने की अनिवार्यता पर भी जोर दिया, ताकि समाज में कोई भूखा न रहे. उन्होंने ब्याज लेने और देने पर रोक लगा दिया.
अहिंसा और शांति
6. मक्का में मुहम्मद साहब को दुश्मनों ने बहोत प्रताड़ित किया था. कई बार उनकी जान लेने की कोशिश की गई. उन्हें यातनाएं दी गई. यहाँ तक की उन्हें मक्का से पलायन कर मदीने भागना पड़ा. लेकिन १० साल बाद जब पूरे अरब पर उनका अधिपत्य स्थापित हो गया और वो वापस मक्का लौटे, तो दुश्मनों से बदला लेने के बजाये उन सभी को माफ़ कर दिया. इससे प्रभावित होकर उनके दुश्मन भी इस्लाम अपनाकर उनके अनुयायी बन गए.
सह-अस्तित्व
7. यधपि इस्लाम और गैर-इस्लाम धर्म के बीच मुहम्मद साहब के ज़माने में तीन- तीन युद्ध हुए.. इसमें भीषण रक्तपात हुआ. युद्ध में दुश्मनों को मारने का प्रस्ताव पास हुआ( कुरआन में आदेश दिया गया). इसके बावजूद जो लोग अरब में इस्लाम नहीं स्वीकार किया, उनके साथ बाद में जबरदस्ती नहीं की गई.. दीन के मामले में कोई जोर जबरदस्ती नहीं करने का हुक्म दिया गया.
युद्ध के नियम
8. मोहम्मद साहब के ज़माने में तीन युद्ध हुए और तीनों में उन्हें जीत हासिल हुई. इसके बावजूद उन्होंने युद्ध के भी नियम बताए थे, कि युद्ध के दौरान महिलाएं, बच्चे, बूढ़े और सरेंडर कर देने वाले सैनिकों पर हमला या उनकी जान नहीं लेनी है. दुश्मनों के बाग़, फसलों और जल स्रोतों को नुक्सान नहीं पहुंचना है.
प्रेम और करुणा
9. मोहम्मद साहब ने सभी से प्रेम और करुणा का व्यवहार रखने का आदेश दिया. उन्होंने लोगों को यहाँ तक आदेश दिया कि किसी यतीम यानि अनाथ बालक के सामने अपने बच्चे से प्रेम ने करो.. इससे उस अनाथ बालक को ठेस पहुंचेगी. उन्होंने कहा कि प्यार से किसी अनाथ के सर पर हाथ फेरना भी नेकी का काम है. मोहम्मद साहब ने पड़ोसियों का ख़ास ख्याल रखने का निर्देश दिया. उन्होंने कहा कि अगर आपका पड़ोसी चाहे वो किसी भी धर्म का हो अगर रात में भूखा रह जाए और आप खाना खाकर सो जाते हैं, तो आप मुसलमान नहीं हो सकते. उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में लोगों को सब्र यानी संयम और करुणा से काम लेने की शिक्षा दी.
इन्साफ
10. मुहम्मद साहब ने इंसानों को हर हाल में इन्साफ की बात करने.. सच का साथ देने और नाइंसाफी, झूठ, फरेब, चोरी, बेईमानी का विरोध करने की शिक्षा दी. उन्होंने कहा कि अल्लाह इन्साफ करने वालों को पसंद करता है. उन्होंने कहा कि एक दिन हमें मरने के बाद फिर हमें जिन्दा होना है, और दुनिया में किये गए अपने कर्मों का हिसाब देना है. इसलिए हमेशा सत्कर्म करने चाहिए और बुरे कामों से बचना चाहिए. अल्लाह बुरे लोगों को जहन्नम और अच्छे लोगों को मरने का बाद जन्नत का इनाम देगा.