Eid Ul-Adha 2023: इस्लाम धर्म में क्यों दी जाती है कुर्बानी? और कब हुई शुरु? जानें पूरा इतिहास
Eid Ul-Adha 2023: इस्लाम धर्म के मान्यताओं के अनुसार हर साल बकरीद 10 वीं जिल हिज्जा को मनाई जाती है. जानें कुर्बानी का क्या है पूरा इतिहास और इससे जुड़ी पुरी कहानी.
Eid Ul-Adha 2023: इस्लाम धर्म में 30 दिनों के रोजे यानी उपवास के बाद ईद उल-फित्र ( Eid ) मनाया जाता है. ये त्योहार तीस दिन के रोजे रखने के बाद उसके खुशी में मनाया जाता है. ईद इस्लाम धर्म में का सबसे बड़ा पर्व है.उसके बाद ईद-उल-अजहा मुस्लिम धर्म का दूसरा सबसे बड़ पर्व है. हर साल जिल हिज्जा के दसवीं तारीख को बकरीद ( Bakrid ) मनाई जाती है.
इस्लामिक परंपराओं के अनुसार बकरीद यानी जिसे कुर्बानी का भी पर्व कहा जाता है मुस्लिम समाज जानवरों की कुर्बानी देते हैं. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर बकरीद यानी कुर्बानी की परंपरा कैसे और कब शुरु हुई? इस पर्व को लेकर के कई सवाल हैं? उसी सवाल का जवाब आज हम आपको बताएंगे.
बेटे की दी कुर्बानी
कुर्बानी की परंपरा इसलाम धर्म के अनुसार हर साल 10 वीं जिल हिज्जा को मनाई जाती है. और लगातार तीन दिनों तक चलता है. कुर्बानी का सिलसिला अल्लाह के पैगंबर हजरत इब्राहीम अलै के वक्त में शुरु हुई थी. इस्लाम धर्म के मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि अल्लाह ने इम्तिहान लेने के लिए हजरत इब्राहीम को सपना आया और उस सपने में कहा गया कि तुम अपनी सबसे प्यारी जिससे तुम बेहद मुहब्बत करते हो उसे कुर्बान करें.सपने में आने के बाद इब्राहीम ने फैसला लिया कि उसका सबसे अजीज और जिससे वो सबसे ज्यादा मुहब्बत करता है वो उसका बेटा हजरत इस्माइल है.
इब्रहिम ने अल्लाह के आदेश पर किया अमल
इब्रहिम ने अल्लाह के दिये सपनों में आए आदेश को मानते हुए अपने प्यारे बेटे को कुर्बान करने के लिए निकल गए.जब पिता इब्राहिम अपने लखते जिगर को लिए ले जा रहा था तब बेटे ने अपने वालिद ( पिता ) इब्राहिम से कहा कि अब्बू आप मेरे चेहरे को जमीन की ओर कर दें. ताकि आप मुझे कुर्बान करते समय मेरी मुहब्बत मेरी गर्दन पर कहीं छुरी न चला पाएं. इसके बाद इब्राहिम ने वैसे ही किया और अपने चेहरे पर कपरा बांधकर बेटे को कुर्बान कर दिया.
बेटे की जगह अल्लाह ने दुम्बा को भेजा
इस्लाम धर्म के अनुसार जब पैगंबर इब्राहिम ने अपनी आंख पर पट्टी बांध कर और बेटे को जमीन की ओर करके गले पर जब कुर्बानी के लिए छुरी चलाए तभी अल्लाह के फरिश्तों ने उनके बेटे की जगह पर एक दुम्बा को रख दिया. और तब से लेकर आज तक इसी परंपराओं के अनुसार हर वर्ष 10 वीं जिल-हिज्जा को कुर्बानी दी जाती है. तब से लेकर मुस्लिम समाज उसी परंपराओं के अनुसार बड़ी अकीदत के साथ कुर्बानी करते हैं.