टेलीविजन या टैबलेट जैसे डिवाइस के स्क्रीन पर बच्चों के ज्यादा समय देने को लेकर आए दिन अलग अलग रिसर्च सामने आते रहे हैं इनसे निकले नतीज़े एक बात की ओर तो साफ तौर पर इशारा करते हैं कि मोबाइल स्क्रीन पर ज़रूरत से ज़्यादा समय बिताने से बच्चों के विकास पर गहरा प्रभाव डालती है क्योंकि मोबाइल स्क्रीन पर ज़्यादा समय बिताना उनके आपस मे मेलजोल बढ़ाने में रुकावट पैदा करता है. ज़्यादा मोबाइल चलाने से बच्चे सामाजिक तौर पर अपने परिवेश से अलग हो जाते हैं जिनसे उनके सामाजिक विकास पर गहरा असर पड़ता है और वो मोबाइल चलाने के आदि हो जाते हैं .कई बार तो ये लत इतनी बढ़ जाती है कि इससे छुटकारे के लिए मनोचिकित्सकों की सलाह लेनी पड़ जाती है .  


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बच्चों में तेज़ी से बढ़ा है हार्ट डैमेज का खतरा


हिंदुस्तान में शुरू से ही पैरेंट अपने बच्चों के मोबाइल चलाने की आदत को लेकर फिक्रमंद रहें हैं लेकिन बदलते समय के कारण और एकल परिवार की अवधारणा बढ़ने के बाद से बच्चों में फिजिकल एक्टिविटी में कमी आयी है और मोबाइल की तरफ उनका रुझान तेज़ी से बढ़ा है . हाल ही में पब्लिश हुई यूरोपियन सोसायटी आफ कार्डियोलाजी कांग्रेस के कुओपियो के पूर्वी फिनलैंड यूनिवर्सिटी में एंड्रयू एग्बाजे की लीडरशिप में हुए रिसर्च के अनुसार, बचपन में फिजिकल एक्टिविटी में कमी यंग एज में हार्ट डैमेज के खतरे को बढ़ा रहा है.


कैसे किया गया था ये रिसर्च


इस रिसर्च  में नब्बे के दशक में जन्मे बच्चों का डाटा लिया गया था, इसमें 1990 और 1991 में पैदा हुए 14,500 बच्चों के वयस्क जीवन तक उनके स्वास्थ्य और जीवनशैली पर नजर रखी गई थी.  इस स्टडी में शामिल किए गए बच्चों में से 766 यानी 55 प्रतिशत लड़कियों और 45 प्रतिशत लड़कों  को 11 साल की उम्र में एक स्मार्ट घड़ी पहनने के लिए कहा गया था, जिससे पूरे  सात दिनों के लिए उनकी हर गतिविधि पर नजर रखी गई.  15 और 24 साल की उम्र में इस प्रयोग को फिर से दोहराया गया. उसके बाद फिर इन लोगों के इकोकार्डियोग्राफिक का एनालिसिस किया गया.


ज्यादा मोबाइल चलाने से बढ़ता है दिल का वजन


इस रिसर्च से पता चला है कि 11 साल की उम्र में बच्चे रोजाना लगभग 362 मिनट तक एक ही पोजीशन में थे. जबकि15 साल में यह बढ़कर रोज़ाना 474 मिनट हो गया और फिर 24 साल की उम्र में ये 531 मिनट हो गया. स्टडी के मुताबिक  13 वर्षों में डेली बेसिस पर  2.8 घंटे की बढ़ोतरी हुई है.  सबसे गंभीर बात तो ये है कि इकोकार्डियोग्राफी में युवा लोगों के दिल के वजन में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई


लाइफस्टाइल में सुधार है बहुत ज़रूरी 


माना जाता है कि सिडेंटरी लाइफस्टाइल  से युवाओं में मेटाबोलिक रोग जैसे मोटापा और टाइप 2 मधुमेह के साथ ही हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ जाता है. नए स्टडी से पता चलता है कि बहुत कम उम्र में अनकंट्रोल्ड स्क्रीन टाइम- नौंजवानों में दिल की बीमारी के शुरुआत का कारण बन सकता है. रिसर्चर का मानना है कि हार्ट डिजीज के पारंपरिक कारकों (धूमपान, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर आदि) को हटाकर लाइफस्टाइल को भी इस सूची में शामिल किया जाना चाहिए