Fazalganj Riot Case: उत्तर प्रदेश सरकार ने 2015 में दो समुदायों के लोगों के बीच झड़प के दौरान हुए दंगे और आगजनी की घटना से संबंधित 31 आरोपियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामले को वापस लेने का आदेश दिया है. यह घटना समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान हुई थी और फजलगंज थाना क्षेत्र के दर्शनपुरवा में एक धार्मिक पोस्टर के कथित अनादर की वजह से हुई थी. 


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इस घटना के दौरान दो समुदायों के सदस्यों ने पथराव किया और एक-दूसरे के खिलाफ नारे लगाए, हालांकि कोई जख्मी नहीं हुआ था. दर्शनपुरवा पुलिस चौकी के तत्कालीन प्रभारी उपनिरीक्षक बृजेश कुमार शुक्ला ने दंगा भड़काने, आगजनी और सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम (पीपीडी एक्ट) और आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की दूसरे संबंधित धाराओं के तहत 50 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी. 31 व्यक्तियों पर मामला दर्ज किया गया और बाद में अदालत ने उन्हें जमानत दे दी. 


सरकारी वकील ने क्या कहा?
जिला सरकारी वकील (अपराध) दिलीप अवस्थी ने पीटीआई को बताया कि सभी 31 कथित आरोपियों ने राज्य सरकार को एक लिखित अनुरोध प्रस्तुत किया था, जिसमें उनके खिलाफ आपराधिक मामला वापस लेने की मांग की गई थी. मामले को एक समिति को भेजा गया जिसने जिला प्रशासन और पुलिस से रिपोर्ट मांगी. 


अवस्थी ने कहा, "राज्य सरकार ने 31 लोगों के खिलाफ लंबित मामले को खत्म करने का आदेश जारी किया है. लिखित आदेश कानपुर के जिला मजिस्ट्रेट को भेजा गया है, जो इसे आगे की कार्रवाई के लिए डीजीसी कार्यालय को भेजेंगे. फजलगंज पुलिस में दर्ज मामला एक महानगर मजिस्ट्रेट अदालत में लंबित था. 


बीजेपी जिला अध्यक्ष दीपू पांडे ने क्या कहा?
वहीं, कानपुर उत्तर के बीजेपी जिला अध्यक्ष दीपू पांडे ने पीटीआई को बताया कि सभी 31 आरोपी व्यक्ति पहले उनसे मिले थे और 2015 से उनके खिलाफ लंबित आपराधिक मामले के बारे में बताया था. उन्होंने कहा, "मैंने यूपी के वित्त और संसदीय मामलों के मंत्री सुरेश कुमार खन्ना से संपर्क किया, जो कानपुर के प्रभारी मंत्री हैं, जिन्होंने मामले को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ध्यान में लाया, जिन्होंने मामले को वापस लेने के आदेश जारी किए." 


ज्यादातर थे बीजेपी कार्यकर्ता आरोपी
जबकि राज्य सरकार ने मामले को खत्म करने का आदेश जारी किया है, कानूनी औपचारिकताएं अभी पूरी नहीं हुई हैं. पांडे ने कहा कि उन्होंने इस मामले को तब आगे बढ़ाया जब उन्हें पता चला कि ज्यादा मुल्जिम बीजेपी कार्यकर्ता और दलित तथा पिछड़े समुदाय के लोग हैं, जिन्हें कथित "हिंदू विरोधी दृष्टिकोण" के कारण आपराधिक मामले में फंसाया गया है.