नई दिल्लीः आज गुड फ्राइडे है, यानी आज ही के दिन यीशु को यहूदी शासकों ने येरूसलम में फांसी पर लटका दिया था. आज के दिन को पूरी दुनिया में ईसाई धर्म के लोग शोक दिवस के रूप में मनाते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि यीशु को न सिर्फ ईसाई अपना आराध्य मानते हैं बल्कि मुसलमान भी उन्हें बहुत श्रद्धा और इज्जत देते हैं. मुसलमान भी उन्हें अपना पैगंबर मानते हैं और उन्हें इज्जत से ईसा अलेहिस्सलाम के नाम से संबोधित करते हैं.
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि ईसा का जिक्र इस्लाम धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ कुरान में भी किया गया है. कुरान में एक सूरह है मरियम, जिसमें ईसा और उनकी मां मरियम का जिक्र किया गया है. 
यहां तक कि किसी शख्स के लिए ईमान लाने या मुसलमान होने की शर्तों में यह भी शामिल है कि वह ईसा अलेहिस्सलाम और उनकी किताब यानी बाइबिल पर भी यकीन लाए और यह भरोसा करे कि ईसा अल्लाह के भेजे हुए पैगंबर हैं और बाईबल अल्लाह की भेजी हुई किताब है, जिसमें अल्लाह का संदेश है. 
इस्लाम और कुरान के मुताबिक, इश्वर/ अल्लाह ने देश, काल और परिस्थितियों के मुताबिक दुनिया में कुल 1 लाख 24 हजार देवदूत भेजे हैं, जिनमें कुछ का जिक्र कुरान में भी किया गया है. इन्हीं में से ईसाई के आराध्य यीशु और यहूदियों के आराध्य हजरत दाउद का भी जिक्र है.


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हालांकि, ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म में ईसा और बाइबल को लेकर कुछ मान्यताएं अलग है और उन्हीं पर दोनों धर्मों के बीच टकराव भी पैदा होता है.


ईसाई जहां, यीशु को ईश्वर या ईश्वर की संतान मानते हैं, वहीं मुसलमान उन्हें सिर्फ एक पैगंबर मानते हैं, जो ईश्वर का संदेश लेकर दुनिया में अवतरित हुए थे. मूलतः ईसा भी मानवता और इस्लाम का सन्देश लेकर धरती पर भेजे गए थे, लेकिन धोखे से एक वर्ग ने उन्हें ही इश्वर मान लिया.  मुसलमान मानते हैं कि ईसा को ईश्वर ने बिना पिता के पैदा किया था, इसका पूरा जिक्र कुरान में मौजूद है. वहीं, ईसाई उन्हें ईश्वर की संतान बताते हैं और उनका ईश्वर की तरह पूजा करते हैं, जबकि कुरआन में ईसा को इश्वर का पिता मानने को गुनाह बताया गया है. मुसलमान उन्हें हजरत मुहम्मद साहब या अन्य पैगंबरों की तरह एक पैगंबर मानते हैं. ईसा मुहम्मद साहब के काफी पहले के पैगम्बर थे. इस्लाम धर्म के मुताबिक ईश्वर ने धरती पर मुहम्मद साहब के बाद पैगंबर भेजने का सिलसिला रोक दिया था. वह अल्लाह के भेजे हुए आखिरी दूत हैं. इसके बाद उनका काम इंसानों पर छोड़ दिया गया है. और उनके मार्गदर्शन के लिए उन्हें कुरान दिया गया है. 


यहां बाइबल को लेकर भी दोनों में आपसी मतभेद है. इस्लाम के अनुयायी बाइबल को ईश्वरीय किताब तो मानते हैं, लेकिन उनका मानना है कि ईसा के बाद पाखंडी लोगों और करप्ट शासकों ने बाइबल के संदेश को अपने फायदे के मुताबिक बदल दिया है, और इस तरह वह अपने मूल रूप में सुरक्षित नहीं है. इसलिए मुसलमान बाइबल के अब सिर्फ उन्हीं संदेशों पर भरोसा करते हैं, जो कुरान के संदेशों से मेल खाते हैं, बाकी पर वह भरोसा नहीं करते हैं. 


मुसलमान यह भी नहीं मानते हैं सूली पर चढ़ाए जाने वाले शख्स ईसा थे. उनका मानना है कि ईसा को ईश्वर ने सूली पर चढ़ने के पहले ही जिंदा दुनिया से वापस बुला लिया था और वह यह भी मानते हैं कि कयामत के पहले ईसा एक बार फिर धरती पर अवतार लेंगे... 


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