नई दिल्ली: कोई चीज़ महंगी है तो बेहतर होगी और सस्ती  है तो खराब ही होगी, ऐसा मानना ठीक नहीं है. भारत में सस्ती जन औषधि दवाओं ने कारोबार के 15 साल पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. पिछले एक साल में जन औषधि स्टोर्स ने कुल 1236 करोड़ रुपए का कारोबार किया है जो, आठ साल पहले सिर्फ  12 करोड़ रुपए का था. इस कारोबार से फायदा सिर्फ मरीज ही नहीं बल्कि दुकानदार से लेकर सरकार तक को हो रहा है. बीते साल के आंकड़े देखें तो जन औषधि के जरिए देश में दुकानदारों ने 247 करोड़ रुपये की आमदनी की. करीब 8 साल पहले यह मुनाफा सिर्फ दो करोड़ रुपए होता था] लेकिन अब इसमें 103 गुना की बढ़ोतरी हुई है.  


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क्या होती है जन औषधि दवाएं ? 
जन औषधि दवाएं वैसी दवाएं हैं, जिन्हें सरकार कंट्रोल रेट पर बेचती है. देश में ऐसी 1800 दवाएं और 250 से ज्यादा मेडिकल उपकरण हैं जिन्हें इस योजना के तहत सस्ते दामों पर बेचा जा रहा है. खुले बाज़ार के मुकाबले ये दवाएं 50 से 90 फीसदी तक सस्ती होती हैं.  शुरुआती वर्षों में लोगों को इन दवाओं पर भरोसा नहीं था. लोग सोचते ये थे कि सस्ती दवा है तो खराब होगी, लेकिन पिछले 8 सालों में दवाओं की गुणवत्ता  पर काम हुआ है. सरकार का दावा है कि जनऔषधि के तहत बनाई जाने वाली दवाओं को कोई चाहकर भी नकली नहीं बना सकता है. लोगों में इन दवाओं को लेकर भरोसा जगा है. यही वजह है कि इस साल इन दवाओं की सेल ने बीते सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.   


दवाओं के दाम में फर्क 
डायबिटीज कंट्रोल करने वाली जो दवा आप रोज़ाना खाते हैं, वो 10 गोली अगर मार्केट में आपको 100 रुपए की मिलती है, तो वही दवा जन औषधि स्टोर पर आपको 20 रुपए में मिल जाती  है. इसी तरह बीपी और हार्ट रेट कंट्रोल करने वाली Amlodipine (एमलोडिपिन) की दस गोली मार्केट में  30 रुपए में मिलती है, लेकिन जन औषधि स्टोर पर ये सिर्फ  5 रुपए में मिलती है. 
ऑगमेंटिन के नाम से बिकने वाली एंटीबायोटिक दवा 6 गोली मार्टेट में 122 रुपए की मिलती है जबकि जनऔषधि स्टोर पर यह केवल 56 रुपए में मिल जाती है.  हाई ब्लड प्रेशर की दवा  - जेनेरिक स्टोर पर ये दवा 9 रुपए में 10 गोली मिलती है जबकि इसका सबसे ज्यादा बिकने वाला ब्रांड 132 रुपए की 15 गोलियां बेचता है .   


इस तरह की नकली दवा बनाना मुश्किल 
भारत में इस वक़्त सस्ती दवाओं के ऐसे 4 स्टोर हैं. उत्तर भारत को सप्लाई करने के लिए ये हरियाणा के गुरुग्राम के  वेयरहाउस से जाती  है.  फिलहाल इस सिस्टम से देश में कुल 1800 दवाएं सप्लाई की जा रही हैं. जल्द ही 2000 दवाएं लोगों तक पहुंचाने का टारगेट है. ये वो दवाएं हैं जो सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती हैं.   Biocon और wockhart जैसी  200 से ज्यादा नामी फार्मा कंपनियां सरकार के लिए दवाएं बना रही हैं. सभी दवाओं पर एक स्पेशल क्यूआर कोड लगा है. सरकार का दावा है कि अगर कोई इसी तरह की नकली दवा बनाना भी चाहे तो नहीं बना पाएगा. ये सिस्टम अभी तक कई बड़ी प्राइवेट फार्मा कंपनियां भी लागू नहीं कर सकी हैं.   


प्रति माह 120 करोड़ रुपये का कारोबार
देश के 756 में से 651 जिलों में मौजूद 9484 जन औषधि केंद्रों पर हर दिन 10 लाख से अधिक लोग दवाएं खरीद रहे हैं, जिन्हें ब्रांडेड की तुलना में पांच से छह गुना सस्ती दवाएं मिल रही हैं.  प्रति माह इन केंद्रों को मिलाकर करीब 120 करोड़ रुपये का कारोबार किया जा रहा है. 

रोजगार के भी हैं अवसर 
अपने स्मार्टफोन में जनऔषधि सुगम नाम का एप डाउनलोड करें. दवाओं के दाम की तुलना करें और दवा खरीदने का फैसला खुद लें. यहां आप ये भी देख पाएंगे कि आपके डॉक्टर ने आपको जो दवा लिखी है, क्या उसका कोई सस्ता विकल्प मिल सकता है ? दूसरा फायदा ये है कि अगर आपने बी फार्मा किया है और आपके पास 120 स्कवेयर फीट जगह का इंतज़ाम है तो आप अपना स्टोर खोल सकते हैं. सरकार इस साल 600 नए स्टोर खोलने वाली है.   


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