Morbi Bridge Collapse: गुजरात के मोरबी पुल हादसे पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सख़्त फटकार लगाई है. अदालत ने पुल की मरम्मत के लिए ठेका देने के तरीकों पर भी सवाल खड़े किए हैं. साथ ही चीफ़ सेक्रेट्री को तलब कर पूछा है कि इतने अहम काम के लिए टेंडर क्यों नहीं बुलाए गए थे? अदालत ने सुनवाई के दौरान ये भी पूछा कि इस अहम काम के लिए समझौता महज़ डेढ़ पेज में कैसे पूरा हो गया? .. अदालत ने मोरबी नगर पालिका को भी फटकार लगाते हुए कहा कि नोटिस के बावजूद वे अदालत में नहीं आए हैं, ऐसा लगता है कि "वे ज्यादा होशियार बन रहे हैं, बल्कि उन्हें सवालों के जवाब देने चाहिए.


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बता दें कि मोरबी पुल हादसे में 135 लोगों की जान चली गई थी और कई लोग ज़ख़्मी हो गए थे. इसके बाद हाईकोर्ट ने इस मामले पर ख़ुद नोटिस लिया था और छह महकमों से जवाब तलब किया था. चीफ जस्सटिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री इस  मामले की सुनवाई कर रहे हैं.


मोरबी नगर पालिका ने ओरेवा ग्रुप को 15 साल का ठेका दिया था, जो कि अजंता ब्रांड की वॉल क्लॉक के लिए जाना जाता है. इस लापरवाही पर अदालत ने कहा कि नगर पालिका जो एक सरकारी निकाय है, उसने चूक की है, जिसने 135 लोगों को मार डाला. क्या गुजरात नगर पालिका ने अधिनियम, 1963 की पासदारी की थी.
 
बता दें कि अब तक इस मामले में कॉन्ट्रैक्ट लेने वाली कंपनी के कुछ कर्मचारियों को ही गिरफ्तार किया गया है, जबकि उच्च प्रशासन को, जिसने 7 करोड़ के समझौते पर दस्तखत किए हैं, कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा है. इसी के साथ अभी तक किसी भी अफ़सर को पुल के रिनोवेशन से पहले फिर से खोलने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है. अदालत ने पहले दिन से कॉन्ट्रैक्ट की फाइलें सीलबंद लिफाफे में जमा करने को भी कहा.
 
इस बीच सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को मोरबी पुल गिरने की घटना की जांच के लिए एक न्यायिक कमीशन के बनाने की मांग वाली PIL पर सुनवाई के लिए राज़ी हो गया है. CJI डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने PIL दाखिल करने वाले वकील विशाल तिवारी की इस दलील पर गौर किया कि मामले की फौरन सुनवाई की ज़रूरत है.