`कुछ लोग ख़यालों से चले जाएं तो सोएं, बीते हुए दिन रात न याद आएं तो सोएं`
Habib Jalib Shayari: हबीब जालिब की कुछ अहम किताबों में `सर-ए-मक़तल`, `ज़िक्र बहते ख़ून का` और `गुम्बद-ए-बेदार` शामिल हैं. हम यहां पेश कर रहे हैं हबीब जालिब के कुछ चुनिंदा शेर
Habib Jalib Shayari: हबीब जालिब क्रांतिकारी शायर थे. उनकी पैदाइश 24 मार्च 1929 को ब्रिटिश भारत के होशियारपुर के पास एक गांव में हुई. उनका बचपन का नाम हबीब अहमद था. बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. हबीब ने डेली इमरोज़ कराची में प्रूफ-रीडर के तौर पर काम करना शुरू किया. उन्होंने आसान जबान में लिखा और आम तौर पर लोगों से सीधे जुड़े आम मुद्दों को खिताब किया. हबीब जालिब का 12 मार्च 1993 को लाहौर में इंतेकाल हो गया.
अपनी तो दास्ताँ है बस इतनी
ग़म उठाए हैं शाएरी की है
कभी जम्हूरियत यहाँ आए
यही 'जालिब' हमारी हसरत है
कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ
बीते हुए दिन रात न याद आएँ तो सोएँ
इक उम्र सुनाएँ तो हिकायत न हो पूरी
दो रोज़ में हम पर जो यहाँ बीत गई है
इक तिरी याद से इक तेरे तसव्वुर से हमें
आ गए याद कई नाम हसीनाओं के
जिन की यादों से रौशन हैं मेरी आँखें
दिल कहता है उन को भी मैं याद आता हूँ
यह भी पढ़ें: "किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते, सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते"
ये और बात तेरी गली में न आएँ हम
लेकिन ये क्या कि शहर तिरा छोड़ जाएँ हम
तू आग में ऐ औरत ज़िंदा भी जली बरसों
साँचे में हर इक ग़म के चुप-चाप ढली बरसों
न तेरी याद न दुनिया का ग़म न अपना ख़याल
अजीब सूरत-ए-हालात हो गई प्यारे
छोड़ इस बात को ऐ दोस्त कि तुझ से पहले
हम ने किस किस को ख़यालों में बसाए रक्खा
न तेरी याद न दुनिया का ग़म न अपना ख़याल
अजीब सूरत-ए-हालात हो गई प्यारे
आने वाली बरखा देखें क्या दिखलाए आँखों को
ये बरखा बरसाते दिन तो बिन प्रीतम बे-कार गए
इस तरह की खबरें पढ़ने के लिए zeesalaam.in पर जाएं.