नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई 5 जनवरी को तय की है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष इस मामले को लिस्ट किया गया था, जिसके बाद इसे गुरुवार को सुनर्वाइ के लिए समय दिया गया है. इस अतिक्रमण हटाने के अभियान में 5 हजार से ज्यादा घरों को तोड़ा जाना है, जिसके विरोध में प्रभावित लोग धरना और प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं, बुधवार को उनके धरना-प्रदर्शन को शाहीन बाग आंदोलन से कुछ लोगों ने जोड़ कर सोशल मीडिया पर उसे वायरल कर दिया है. उसकी तुलना दिल्ली में एनआरसी के विरोध में बैठी महिला आंदोलनकारियों से की जा रही है. 

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आज होगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका का जिक्र करते हुए कहा, ’’हल्द्वानी में 5,000 से ज्यादा घरों को गिराया जा रहा है. उन्होंने शीर्ष अदालत से 5 जनवरी को सुनवाई के लिए आने वाले मामले को टैग करने का अनुरोध किया है. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में रेलवे की जमीन से कब्जा हटाने का आदेश एक सप्ताह पहले वहां के निवासियों को दिया था.

कुल 4,365 अतिक्रमण हटाए जाने हैं
हल्द्वानी से कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश के नेतृत्व में क्षेत्र के निवासियों ने सोमवार को हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इलाके से कुल 4,365 अतिक्रमण हटाए जाने हैं. बेदखली का सामना कर रहे लोग कई दशकों से उस जमीन पर रह रहे हैं. वहां के निवासी हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का विरोध कर रहे हैं.

इलाके के स्कूल, कॉलेज और मंदिर सभी तोड़े जाएंगे 
उत्तर-पूर्वी रेलवे द्वारा जारी किए गए नोटिसों में कहा गया है कि सभी अतिक्रमणों को ध्वस्त कर दिया जाएगा और अतिक्रमणकारियों से लागत वसूल की जाएगी. लाउडस्पीकरों से भी बार-बार इसकी घोषणा की गई है. इसके बाद गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती, हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास की झुग्गियों में दहशत फैल गई है. यहां हिंदू और मुस्लिमों की मिक्स आबादी रहती है. किसी -किसी मोहल्ले में मुस्लिमों की तादाद ज्यादा है. यहां गर्ल्स कॉलेज, राजकीय इंटर कॉलेज, स्कूल, सरस्वती शिशु विद्या मंदिर और एक शिव मंदिर भी है, जो सभी सकरार के निशाने पर है. इन सभी को तोड़ा जाना है. 
रेलवे ने दावा किया है कि उसके पास पुराने नक्शे, 1959 की एक अधिसूचना, 1971 के राजस्व रिकॉर्ड और 2017 के सर्वेक्षण के दस्तावजे हैं, जो जमीन पर रेलवे के मालिकाना हक को साबित करते हैं. 


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