वकील को हथकड़ी पहनाना असम पुलिस को पड़ा महंगा; HC ने ठोका इतने लाख का जुर्माना
Assam News: यह मामला 2016 का है, जिसमें कार पार्किंग को लेकर मारपीट हुई थी. असम पुलिस के एक होम गार्ड के जरिए एक मुकदमा दर्ज की गई थी जिसमें इल्जाम लगाया गया था कि याचिकाकर्ता मोनोजीत बिस्वास ने 5 अक्टूबर 2016 को उनके साथ मारपीट की थी.
Assam News: गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम पुलिस को बिना उचित कारण के लिए एक एडवोकेट को हथकड़ी लगाने के मामले में पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है. इस मामले में हुई कई सुनवाई के बाद 20 दिसंबर को गुवाहाटी हाईकोर्ट के जस्टिस देवाशीण बरूआ की एकल पीठ ने कहा कि पुलिस के जरिए वकील को बिना उचित कारण के हथकड़ी लगाना भारत के संविधान के आर्टिकल 21 का उल्लंघन है.
यह मामला 2016 का है, जिसमें कार पार्किंग को लेकर मारपीट हुई थी. असम पुलिस के एक होम गार्ड के जरिए एक मुकदमा दर्ज की गई थी जिसमें इल्जाम लगाया गया था कि याचिकाकर्ता मोनोजीत बिस्वास ने 5 अक्टूबर 2016 को उनके साथ मारपीट की थी, क्योंकि उन्होंने याचिकाकर्ता को अपने घर के पास कार पार्किंग करने से रोका था.
होम गार्ड की मुकदमा के आधार पर बिस्वास के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 294, 325, 341 और 353 के तहत मामला दर्ज किया गया. उसी दिन पेशे से वकील बिस्वास ने भी होम गार्ड के खिलाफ धारा 294, 323, 392 और 511 के तहत एक जवाबी मामला दायर की जिसमें इल्जाम लगाया गया था कि उनके साथ भी मौखिक और शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार किया गया था.
गाड़ी पार्किंग को लेकर मारपीट के इस मामले में पुलिस के जरिए इल्जाम पत्र दायर करने के बाद कोर्ट ने मोनोजीत को साल 2020 में बरी कर दिया था. याचिकाकर्ता मोनोजीत ने हाईकोर्ट का रुख करने से पहले अपने बुनियादी मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए असम मानवाधिकार आयोग में भी शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन उनके मामले में जांच अधिकारी की मौत हो जाने से आयोग ने इसमें आगे सुनवाई नहीं की.
इसके बाद साल 2021 मार्च में मोनोजीत ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दर्ज करवाई. उसी याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को अपने फैसले में कहा "याचिकाकर्ता एक वकील है और याचिकाकर्ता को हथकड़ी लगाना और उसे अदालत में ले जाकर परेड करना उसके बाद हथकड़ी के साथ जेल में वापस भेजना, वह भी बिना उचित कारण बताए, न केवल गारंटीकृत संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत याचिकाकर्ता के मानवाधिकारों का उल्लंघन है बल्कि यह वकालत के पेशे को चलाने के लिए उनकी गरिमा और प्रतिष्ठा को भी अपमानित करता है.'' फैसले सुनाते हुए हाईकोर्ट ने असम सरकार को याचिकाकर्ता को 2 महीने के भीतर 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है.
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