MP HC on RSS: केंद्र सरकार ने हाल में ही आदेश जारी कर सरकारी कर्मचारियों के RSS की गतिविधियों में हिस्सा लेने पर लगे बैन को हटा लिया था, जिसपर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने आज यानी 25 जुलाई को टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार को यह समझने में करीब पांच दशक लग गए कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे, अंतरराष्ट्रीय स्तर के संगठन को सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रतिबंधित संगठनों की लिस्ट में गलत तरीके से रखा गया था.


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इस मामले पर हो रही थी सुनवाई
जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति गजेंद्र सिंह की पीठ ने सेवानिवृत्त केंद्रीय सरकारी कर्मचारी पुरुषोत्तम गुप्ता की रिट याचिका का निपटारा करते हुए हाईकोर्ट की यह टिप्पणी की. गुप्ता ने पिछले साल 19 सितंबर को हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमों के साथ-साथ केंद्र के कार्यालय ज्ञापनों को चुनौती दी थी, जो संघ की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी को रोक रहे थे.


कोर्ट ने क्या कहा?
पीठ ने कहा, "कोर्ट इस बात पर अफसोस जताती है कि केंद्र सरकार को अपनी गलती का एहसास होने में करीब पांच दशक लग गए, यह स्वीकार करने में कि आरएसएस जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन को गलत तरीके से देश के प्रतिबंधित संगठनों में रखा गया था और उसे वहां से हटाना बहुत जरूरी था." हाईकोर्ट ने आगे कहा, "इसलिए, इन पांच दशकों में देश की सेवा करने की कई केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों की आकांक्षाएं इस प्रतिबंध की वजह से कम हो गईं, जिसे सिर्फ तभी हटाया गया, जब इसे मौजूदा कार्यवाही के माध्यम से इस न्यायालय के संज्ञान में लाया गया." 


कोर्ट ने दिया था ये निर्देश
पीठ ने केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग और गृह मंत्रालय को निर्देश दिया कि वे अपनी आधिकारिक वेबसाइट के होम पेज पर 9 जुलाई के कार्यालय ज्ञापन को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करें, जिसके माध्यम से सरकारी कर्मचारियों पर संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध हटा दिया गया था. इसलिए, हम कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग और गृह मंत्रालय, भारत सरकार को निर्देश देते हैं कि वे अपनी आधिकारिक वेबसाइट के होम पेज पर मौजूदा याचिका में दायर 9 जुलाई, 2024 के परिपत्र/ओएम की सामग्री और प्रति सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करें.