Uttrakhand News: उत्तराखंड के पहाड़ी इलाको में तरह-तरह की परम्पराएं और अंधविश्वास हमेशा से चलते आ रहे हैं.  परम्पराओं के मुताबिक यहां की लड़कियों और महिलाओं के साथ आज भी  पीरियड्स के दौरान अछूत जैसे बर्ताव किया जाता है. पीरियड्स के बारे में आधी अधूरी जानकारी ने इस इलाको में सदियों से एक अंधविश्वास को जन्म दिया हुआ है. 


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बागेश्वर नगर के कई इलाको में आज भी रूढ़ीवादी परंम्पराओं के मुताबिक लड़कियों और महिलाओं को पीरियड्स के दौरान जानवरों की तरह गाय के गौशाला में रहना पड़ता है. पीरियड्स में चार दिन के लिए वो न तो घर के अंदर जा सकती हैं, और न किसी को छू सकती हैं. हिमालय की गोद में बसे इन दूरस्थ गांवों में आज भी पीरियड्स को लेकर काफी सख्त नियम और प्रथाएं है. जिसे वहां की सभी लड़कियों और महिलाओं को हर हाल में मानना पड़ता है.


डॅाक्टर के मुताबिक ये आम बात 
डॅाक्टर के मुताबिक पीरियड्स आना प्राकृतिक और आम बात है. पीरियड्स के दौरान लड़कियों को काफी चिड़चिड़ापन और मूड स्विंग होते हैं. इसलिए उनके साथ बेहतर बर्ताव करना चाहिए.  लेकिन पहाड़ी इलाके के कई गांव में इसे लेकर बहुत से लोगों में सालों से अंधविश्वास है, जिसके वजह से अभी भी महिलाओं पर बंदिशें लागू की जाती रही है. बागेश्वर के कई गांवों में पीरियड्स के दौरान लड़कियों और महिलाओं का जीवन नर्क बन जाता है. 


उत्तराखंड की डीएम ने शुरू किया अभियान 
पहाड़ के ग्रामीण इलाको में आज भी जागरूकता की कमी के कारण पीरियड्स एक ऐसा मुद्दा बना हुआ है जिस पर बात करना मुनासिब नहीं समझा जाता और जिसे लड़कियों के लिए शर्म का सबब माना जाता है. इस सारी घटना से स्कूल जाने वाली लड़कियो को शारीरिक और मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ रहा है. इसी को देखते हुए बागेश्वर की डीएम अनुराधा पाल ने पीरियड्स को लेकर एक जागरूकता अभियान चलाया है, जिसमें डीएम ने बालिकाओं की समस्या सुनने के लिए डॉक्टर्स और महिला अधिकारियों की एक टीम गठित की है, जो जिले के अलग-अलग स्कूलों में जाकर बालिकाओं की पीरियड्स के दौरान होनें वाली समस्यायें सुनेंगी और उनकी सहायता करेंगी.