Asaduddin Owaisi: हैदराबाद के सांसद और एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने एक हाई कोर्ट के जरिए विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के एक प्रोग्राम में हिस्सा पर फिक्र का इजहार किया है. उन्होंने इस मामले को लेकर अपने सोशल मीडिया पर ट्वीट किया है. लाइव लॉ के मुताबिक न्यायमूर्ति शेखर यादव ने इस प्रोग्राम में कहा कि यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह देश बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार काम करेगा; समान नागरिक संहिता जल्द ही वास्तविकता होगी.


क्या बोले असदुद्दीन ओवैसी?


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ओवैसी ने ट्विटर पर प्रयागराज में वीएचपी की लीगल सेल के जरिए किए गए प्रोग्राम में हाईकोर्ट जज के भाषण की आलोचना की है. इस प्रोग्राम में यूनिफॉर्म सिविल कोड की संवैधानिक  जरूरत पर ध्यान फोकस किया गया था. कार्यक्रम के दौरान, जज ने कथित तौर पर कहा कि भारत “बहुमत की इच्छा” के मुताबिक काम करेगा.


ओवैसी ने बताया कि आरएसएस से जुड़े संगठन वीएचपी को पहले भी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है और उन्होंने इस पर “नफरत और हिंसा” की विचारधाराओं से जुड़े होने का आरोप लगाया. उन्होंने ऐसे प्रोग्राम में एक न्यायाधीश की भागीदारी पर निराशा जाहिर की और तर्क दिया कि यह न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता के बारे में फिक्र पैदा करता है.


 एओआर एसोसिएशन बनाम भारत संघ का दिया हवाला


अपने बयान में असदुद्दीन ओवैसी ने एओआर एसोसिएशन बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि “इंपाशियालिटी, इंडेपेंडेंस, फेयरनेस और फैसला लेने में तर्कसंगतता न्यायपालिका की पहचान है.”


माइनोटिरी कैसे करे जस्टिस की उम्मीद


इसके साथ ही ओवैसी ने बीआर अंबेडकर को भी कोट करते हुए कहा कि लोकतंत्र में बहुमत को शासन करने का दैवीय अधिकार नहीं है. उन्होंने सवाल उठाया कि अल्पसंख्यक समुदाय ऐसे न्यायाधीश से न्याय की उम्मीद कैसे कर सकते हैं, जो वीएचपी के जरिए किए गए प्रोग्राम में खुलेआम हिस्सा लेता है, जिसे वे एक ध्रुवीकरणकारी संगठन मानते हैं.


ओवैसी ने एक्स पर लिखा,"वीएचपी पर कई बार प्रतिबंध लगाया गया. यह आरएसएस से जुड़ा है, एक ऐसा संगठन जिस पर वल्लभभाई पटेल ने ‘घृणा और हिंसा की ताकत’ होने के कारण प्रतिबंध लगाया था. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने ऐसे संगठन के सम्मेलन में भाग लिया. इस “भाषण” का आसानी से खंडन किया जा सकता है, लेकिन माननीय न्यायाधीश को यह याद दिलाना अधिक महत्वपूर्ण है कि भारत का संविधान न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता की अपेक्षा करता है."


ओवैसी ने आगे लिखा,"भारत का संविधान बहुमतवादी नहीं बल्कि लोकतांत्रिक है. लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जाती है. जैसा कि अंबेडकर ने कहा था कि जैसे राजा को शासन करने का कोई दैवीय अधिकार नहीं है, वैसे ही बहुमत को भी शासन करने का कोई दैवीय अधिकार नहीं है."